________________ कारकाणि 139 सर्वोभयाभिपरिभिस्तसन्तैः // 384 // तसन्तै: सर्वादिभियोंगे लिङ्गाद् द्वितीया भवति / सर्वतो ग्रामं वनानि / उभयतो ग्रामं क्रमुकवनानि / अभितो ग्रामं पत्रवनानि / परितो ग्रामं रंभावनानि / कर्मप्रवचनीयैश्च // 385 / / कर्मप्रवचनीययोंगे लिङ्गाद् द्वितीया भवति / के कर्मप्रवचनीया: ? लक्षणवीत्सेप्यंभूतेऽभिर्भागे च परिप्रती।" अनुरेषु सहार्थे च हीने चोपच कथ्यते // 1 // दक्षिणेन नदी-नदी के निकटवर्ती दक्षिण दिशा में। पश्चिमेन केदारम्-खेत के निकटवर्ती पश्चिम दिशा में / इत्यादि / चकार से ऐसा समझना कि निकषा, समया, हा, धिक् अंतरा, अंतरेण इनसे संयुक्त लिंग से भी द्वितीया विभक्ति होती है। यथा निकषा ग्राम-ग्राम के निकट / समया वनं-वन के पास। हा देवदत्तं-हाय ! देवदत्त को। धिक् यज्ञदत्तं-यज्ञदत्त को धिक्कार हो। अंतरा गार्हपत्यमाहवनीयं च वेदि:-गार्हपत्य अग्नि और आहवनीय अग्नि के बीच में वेदी है। अंतरेण पुरुषाकारं न किञ्चिद् लभते-पुरुषार्थ के बिना कुछ भी नहीं मिलता है। तस् प्रत्यय जिसके अन्त में है ऐसे सर्व, उभय, अभि और परि के योग में लिंग से द्वितीया होती है // 384 // जैसे—सर्वतो ग्राम वनानि-गाँव के चारों तरफ वन है। उभयतो. ग्रामं क्रमुकवनानि-गाँव के दोनों तरफ सुपारी के वन हैं। अभितो ग्रामं पत्रवनानि-गाँव के चारों तरफ पत्ते के वन हैं। परितो ग्रामं रंभावनानि-गाँव के सब तरफ केले के वन हैं। . कर्मप्रवचनीय अर्थ के योग में द्वितीया होती है // 385 // कर्म प्रवचनीय कौन-कौन हैं ? श्लोकार्थ-लक्षण, वीप्सा और इत्थंभूत अर्थ में 'अभि' शब्द कर्मप्रवचनीय है। भाग अर्थ में परि और प्रति शब्द कर्म-प्रवचनीय हैं / एवं पूर्वोक्त अर्थ में भी परि प्रति शब्द कर्मप्रवचनीय हैं / उपर्युक्त अर्थ में और सह अर्थ में अनुशब्द कर्मप्रवचनीय है। हीन अर्थ में उप शब्द और अनु शब्द कर्म प्रवचनीय होता है // 1 // ..लक्षण अर्थ में, वीप्सा अर्थ में, इत्थंभूत अर्थ में 'अभि' शब्द कर्मप्रवचनीय है। भाग अर्थ में परि और प्रति शब्द कर्मप्रवचनीय है। च शब्द से ऐसा समझना कि लक्षण वीप्सा और इत्थंभूत अर्थ में भी 'परि प्रति' शब्द कर्मप्रवचनीय होते हैं। अनु शब्द इन पूर्वोक्त अर्थों में कर्मप्रवचनीय होता है। और सह अर्थ में भी अनु' शब्द कर्मप्रवचनीय होता है / यहाँ च शब्द समुच्चय के लिये है / हीन अर्थ में 'उप' शब्द कर्म प्रवचनीय होता है / और चकार से हीन अर्थ में 'अनु' शब्द भी कर्म प्रवचनीय होता है। 1. कर्मक्रियां प्रोक्तवन्तः कर्मकारकमभिधीयमाना इत्यर्थः।