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________________ 138 कातन्त्ररूपमाला अथ कारकं किञ्चिदुच्यते ___ कि कारकं ? करोति क्रियां निवर्तयतीति कारकं / कस्मिन्नर्थे प्रथमा विभक्तिः ? कर्तरि प्रथमा। क: कर्ता ? यः करोति स कर्ता // 380 // य: क्रियां करोति स कर्तृसंज्ञो भवति / देवदत्त: करोति / मुनिरधीते / यज्ञदत्तौ लुनीत: / यती पठतः / विष्णुमित्रा गच्छन्ति / साधवोऽनुतिष्ठन्ति / इत्यादि / कस्मिन्नर्थे द्वितीया ? कर्मणि द्वितीया / किं कर्म ? / यत्क्रियते तत्कर्म // 381 // का यत्क्रियते तत्कारकं कर्मसंज्ञं भवति / कुम्भं करोति / काष्ठं छिनत्ति / मार्ग रुणद्धि / स्तनौ पिबति / गुरून् वन्दते / इत्यादि / द्वितीयैनेन // 382 // एनप्रत्ययान्तेन योगे लिङ्गाद् द्वितीया भवति / अदूरे एनोऽपञ्चम्या दिग्वाचिनः॥३८३॥ अदूरार्थे दिग्वाचिन: पर एनप्रत्ययो भवति अपञ्चम्या: / अपञ्चम्या इति कोऽर्थ: ? द्वितीयायाः / गणनया पञ्चमी विभक्तिः षष्ठी। तेन षष्ठ्यर्थे द्वितीया भवति / अदूरवीन्यां पूर्वस्यां द्विशीत्यर्थ: / / पूर्वेण ग्रामं / उत्तरेण गिरिं। दक्षिणेन नदीं। पश्चिमेन केदारमित्यादि / चकारानिकषासमयाहाधिगन्तरान्तरेण संयुक्ताद् लिङ्गाद् द्वितीया भवति / निकषा ग्रामं / समया वनम्। हा देवदत्तम्। धिग् यज्ञदत्तं / अन्तरा गार्हपत्यमाहवनीयं च वेदिः / अन्तरेण पुरुषाकारं न किञ्चिल्लभते / अथ किंचित् कारक प्रकरण कहा जाता है। कारक किसे कहते हैं जो क्रिया को करता है बनाता है वह कारक है। किस अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है ? कर्ता अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है। कर्ता किसे कहते हैं ? , जो क्रिया को करता है वह कर्ता कहलाता है // 380 // जो क्रिया को करता है उस की कर्तृ संज्ञा होती है। जैसे 'देवदत्त करता है', मुनि पढ़ते हैं, दो यज्ञदत्त काटते हैं। दो मुनि पढ़ते हैं। विष्णुमित्र जाते हैं। बहुत से साधु पीछे बैठते हैं / इत्यादि। किस अर्थ में द्वितीया विभक्ति होती है ? कर्म अर्थ में द्वितीया होती है। कर्म किसे कहते हैं ? जो किया जाता है वह कर्म है // 381 // कर्ता के द्वारा जो किया जाता है वह कारक कर्म संज्ञक है। जैसे कुम्भं करोति—घड़े को बनाता है। काष्ठं छिनत्ति-लकड़ी को काटता है। मार्ग रुणद्धि-मार्ग को रोकता है। स्तनौ पिबति-बालक माता के स्तन पीता है। गुरून् वंदते-शिष्य गुरुओं की वंदना करता है / इत्यादि। एन प्रत्यय के योग में द्वितीया होती है // 382 // एन प्रत्यय जिसके अन्त में है ऐसे शब्दों के योग में लिंग से द्वितीया विभक्ति हो जाती है। अदूर अर्थ में दिग्वाची से परे अपञ्चमी से एन प्रत्यय होता है // 383 // निकटवर्ती अर्थ में दिग्वाची शब्दों से परे पंचमी अर्थ के बिना 'एन' प्रत्यय होता है / 'अपञ्चम्या:' इस शब्द से क्या अर्थ लेना ? षष्ठी विभक्ति के अर्थ में द्वितीया विभक्ति होती है यह अर्थ लेना। अर्थात् द्वितीया विभक्ति होने पर भी अर्थ षष्ठी का निकलता है। जैसे 'पूर्वेण ग्राम' यहाँ पूर्वेण में एन प्रत्यय है और दिशावाची शब्द है अतएव ग्राम में षष्ठी न होकर द्वितीया हुई है इसका अर्थ है कि 'ग्राम के निकटवर्ती पूर्व दिशा में ऐसे ही 'उत्तरेण गिरिं' पर्वत के निकटवर्ती उत्तर दिशा में। .
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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