________________ स्त्रीप्रत्ययाः 137 यन् अन् विकरणाभ्यां परोऽन्तिरनकारको न भवति ईकारे परे / दीव्यन्ती सीव्यन्ती पचन्ती गच्छन्ती स्त्री इत्यादि / न यनन्भ्यामिति किं ? सुन्वती तन्वती क्रीणती सती आयष्मती धनवती इत्यादि। ऋ। की हीं भी क्रोष्ट्री इत्यादि / सखि / सखी। इवर्णावर्णयोर्लोपः। नान्तात् स्त्रीकारे नित्यमवमसंयोगादनोऽलोपोऽलुप्तवच्च पूर्वविधौ // 377 / अवमसंयोगादनोऽलोपो नित्यं भवति स्त्रीकारे परे / राज्ञी दण्डिनी गोमिनी तपस्विनी यशस्विनी / वरुणेन्द्रमृडभवशवरुद्रादान्॥३७८॥ एभ्य: परो आन् प्रत्ययो भवति / तेभ्यश्च ई प्रत्यय: / वरुणानी शर्वाणी मृडानी इन्द्राणी भवानी रुद्राणी। नान्तसंख्यास्वस्त्रादिभ्यो न // 379 // नान्तेभ्य: संख्यादिभ्यः स्वस्रादिभ्यश्च ईप्रत्ययो न भवति / पञ्चदश / तिस्रः / चतस्रः / आदि शब्दात् सीमा दामा। बहवो राजानो यस्यां पुर्यां सा बहुराजा। स्वसा माता दुहितेत्यादि / इति प्रत्ययान्ता: अत: दीव्यन्त का दीव्यन्ती, पचन्त का पचन्ती बना। प्रश्न-यन्, अन् विकरण के आने पर 'न' का लोप नहीं होता ऐसा क्यों कहा ? तो सुन्वती, क्रीणन्ती सन्त्-सती आदि। धनवन्त्-धनवती बनता है। इसकी सिद्धि के लिये ऋकारान्त-कर्तृ-की, हीं, भी बना। सखि-सखी बना। नकारांत में दण्डिन् तपस्विन्–दण्डिनी, तपस्विनी बना। राजन् + ई, स्त्रीलिंग में.. नकारांत से स्त्रीलिंग में प्रत्यय करने पर 'व म', का संयोग न होने से अन् के 'अ' - का लोप हो जाता है // 377 // अत: राजन् + ई = राज्ञी बना। वरुण, इन्द्र, मृड भव, शर्व, रुद्र शब्दों से ई प्रत्यय के आने पर आन् का आगम हो जाता है // 378 // 'अत: वरुणानी, इन्द्राणी, शर्वाणी आदि बना। नकारांत संख्यावाची शब्द और स्वसृ आदि से स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय नहीं होता है // 379 // पंच, दश, तिस्रः, चतस्र: आदि बने। आदि शब्द से सीमन् दामन् है तो सीमा, दामा बना। बहुत राजा हैं जिस पुरी में उसे कहते हैं बहुराजा नगरी / ऐसे ही स्वसा, माता दुहिता आदि शब्दों में स्त्रीलिंग प्रत्यय नहीं होते हैं। इस प्रकार से स्त्रीलिंग प्रत्यय प्रकरण समाप्त हुआ। १.स्त्रीकारे नित्यं // 383 // अवमसंयोगादनोऽलोपो नित्यं भवति स्त्रीकारे परे स चालुप्तवद्भवति पूर्वस्थवर्णस्य विधौ कर्तव्ये / राज्ञी / इति समीचीनं दृश्यते।