________________ 128 कातन्त्ररूपमाला त्वन्मदोरेकत्वे // 346 // एकत्वे वर्तमानयोर्युष्मदस्मदोः स्थाने त्वन्मदौ भवत: / त्वमहं सौ सविभक्त्योः // 347 // युष्मदस्मदोः सविभक्त्योस्त्वमहमित्येतौ भवत: सौ परे / त्वं / अहं / यवावौ द्विवाचिष // 348 // युष्मदस्मदो: युवावौ द्विवाचिषु भवतः / अन्तलोपे सति अमौ चाम्॥३४९॥ युष्मदादिभ्य: पर: अम् औ च आम् भवति / सवर्णदीर्घः / युवां / आवां। . यूयं वयं जसि // 350 // युष्मदस्मदो: सविभक्त्योयूयं वयमित्येतौ भवतो जसि परे / यूयं / वयं / त्वन्मदोरेकत्वे इति त्वत् अम् / मत् अम् इति स्थिते - एषां विभक्तावन्तलोपः // 351 // . एषां युष्मदादीनां अन्तस्य लोपो भवति विभक्तौ परत: / सवणे दीर्घः / त्वां / मां / युवां / आवां / हकारांत शब्द अप्रसिद्ध है। इस प्रकार से व्यञ्जनांत नपुंसकलिंग समाप्त हुआ। अब व्यञ्जनान्त अलिंग युष्मद्, अस्मद् शब्द कहे जाते हैं। ... युष्मद् + सि, अस्मद् + सि हैं। एकवचन में वर्तमान युष्मद् अस्मद्, शब्द को 'त्वद्, मद्' आदेश हो जाता है // 346 // सि विभक्ति सहित युष्मद्, अस्मद् शब्द में 'त्वम् अहं' आदेश हो जाता है // 347 // अत: त्वम्, अहं शब्द बन गये। युष्मद् + औ, अस्मद् + औ युष्मद् अस्मद् को द्विवचन में 'युव, आव' आदेश हो जाता है // 348 // युष्मद् अस्मद् से परे 'अम्' और 'औ' विभक्ति को 'आम्' आदेश हो जाता है // 349 // युव+ आम्, आव+आम् सवर्ण को दीर्घ होकर युवाम्, आवाम् बना। युष्मद् + जस्, अस्मद् + जस् जस् विभक्ति के आने पर विभक्ति सहित युष्मद्, अस्मद् शब्द को यूयम्, वयम् आदेश हो जाता है // 350 // अत: “यूयं, वयं," बना। युष्मद् + अम्, अस्मद् + अम् है / “त्वन्मदोरेकत्वे” सूत्र से त्वत्, मत् आदेश होकर “अमौ चाम्" सूत्र से अम् को 'आम्' आदेश हुआ। विभक्ति के आने पर युष्पद, अस्मद् के अन्त का लोप होता है // 351 // इस सूत्र से त्वत् मत् के, तकार का लोप होकर संधि होकर त्वाम्, माम् बना। युष्मद् +शस्, अस्मद् + शस् है /