________________ व्यञ्जनान्तेष्वलिङ्गाः 129 आन् शसः // 352 // युष्मदादिभ्य: परस्य शस् आन् भवति / युष्मान् / अस्मान् / एत्वमस्थानिनि // 353 // युष्मदादीनामन्तस्य एत्वं भवत्यस्थानिनि अनादेशिनि प्रत्यये परे / त्वया। मया। आत्वं व्यञ्जनादौ // 354 // .. युष्मदादीनामन्तस्य आत्वं भवति व्यञ्जनादौ विभक्तौ आदेशवर्जिते प्रत्यये परे। युवाभ्यां / आवाभ्यां / युष्माभिः / अस्माभिः / तुभ्यं मह्यं ङयि // 355 // युष्मदस्मदोः सविभक्त्यो: तुभ्यं मह्यमित्येतौ भवतो ङयि परे / तुभ्यं मह्यं / युवाभ्यां / आवाभ्यां / भ्यसभ्यम् // 356 // एभ्यो युष्मदादिभ्यः परो भ्यस् अभ्यं भवति / युष्मभ्यं / अस्मभ्यं / युष्मद् आदि से परे शस् को 'आन्' हो जाता है // 352 // पुन: ३५१वें सूत्र से अंत दकार का लोप होकर 'युष्मान्, अस्मान्' बना। युष्मद् +टा अस्मद् +टा, ३४६वें सूत्र से त्वत्, मत् हो गया। जिसके स्थान पर कोई आदेश न हो वह अनादेश प्रत्यय कहलाता है। टा-ओस् अनादेश वाले प्रत्यय के आने पर युष्मद्, अस्मद् के अन्त को 'ए' हो जाता है // 353 // मतलब 'टा' को 'अन' आदेश होता है। एवं सूत्र 136 से त्व के अ का लोप होकर त्वे 'मे' आदेश होकर त्वे+आ, मे+आ संधि होकर 'त्वया, मया' बन गया। युष्मद् + भ्याम्, अस्मद् + भ्याम् हैं / 'युवावौ द्विवाचिषु' सूत्र से युव, आव करके आदेश वर्जित व्यञ्जनादि विभक्ति के आने पर युष्मदादि को 'आ' हो जाता है // 354 // अत: 'युवाभ्याम्, आवाभ्याम्' बना। युष्मद् + भिस्, अस्मद् + भिस् है। ३५१वें सूत्र से अंत के द् का लोप एवं ३५४वें सूत्र से 'आकार' होकर 'युष्माभिः, अस्माभिः' बना। युष्मद् + डे, अस्मद् + डे है। ढे विभक्ति के आने पर विभक्ति सहित युष्मद्, अस्मद् को तुभ्यं, मह्यं आदेश हो जाता है // 355 // अत: तुभ्यं, मह्यं बना। युष्मद् + भ्यस्, अस्मद् + भ्यस् युष्मदादि से परे 'भ्यस्' को 'अभ्यं' हो जाता है // 356 // पुन: ३५१वें सूत्र से युष्मद्, अस्मद् के अंत के द् का लोप होकर एवं १३६वें सूत्र से अ का लोप होकर 'युष्मभ्यं, अस्मभ्यं' बना। युष्मद् + ङसि, अस्मद् + ङसि है। 'त्वन्मदोरेकत्वे' सूत्र से त्वत्, मत् आदेश करके