________________ 120 कातन्त्ररूपमाला बहुवचनमेव। त्रिचतुरोरित्यादिना चतस्रादेश: / तौ रं स्वरे इति रत्वं / चतस्रः / चतस्रः / चतसृभिः / चतसृभ्यः / चतसृभ्य: न नामि दीर्घमिति दीर्घा न भवति / चतसृणां / चतसृषु / इत्यादि / गिशब्दस्य तु भेदः / सौ इरोरीरूरौ // 112 // धातोरिरुरोरीरूरौ भवतो विरामे व्यञ्जनादौ च / गी: / गिरौ। गिरः / सम्बोधनेऽपि तद्वत् / गिरं। गिरौ / गिरः / गिरा। गीर्थ्यां / गीर्भि: / गिरे / गीभ्यां / गीर्य: / गिरः / गीé / गीर्थ्य: / गिरः / गिरोः / "त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ विभक्तौ” २२३वें सूत्र से चत्वार् को 'चतसृ' आदेश 'तौ र स्वरे' २२४वें सूत्र से ऋ को र् होकर ‘चतस्रः' बना / चतसृ + आम् ‘न नामि दीर्घ' से दीर्घ नहीं हुआ तब 'नु' होकर चतसृणाम् बना। चतस्रः / चतस्रः / चतसृभिः / चतसृभ्यः, चतसृभ्यः / चतसृणाम् / चतसृषु / गिर् शब्द में कुछ भेद है। गिर् + सि “इरुरोरीरूरौ" ११२वें सूत्र से 'ईर् होकर 'सि' का लोप एवं 'र' को विसर्ग हो गया। तब 'गी:' बना। ____ गिर् + भ्याम् = गीाम्, संपूर्ण व्यंजनादि विभक्ति में दीर्घ होगा। वा का अधिकार होने से व्यंजन विभक्ति में रेफ हो विसर्ग नहीं होगा। गिर्-वाणी गिरः / गिरे 'गीाम् गीर्थ्यः हे गीः हे गिरौ हे गिरः | गिरः गीर्थ्याम् गीर्यः गिरम् गिरौ गिरः गिरः गिरोः गिराम् गिरा गीर्ध्याम् गिरि गिरोः गीर्षु इसी प्रकार से पुर् धुर् आदि के रूप चलते हैं। रकारान्त शब्द हुए। लकारान्त शब्द अप्रसिद्ध है / वकारांत स्त्रीलिंग 'दिव्' शब्द है। दिव+सि 'औ सौ' सूत्र ३१४वें से सि के आने पर वकार का 'औ' एवं सि का विसर्ग होकर 'द्यौः' बना। दिव्+भ्याम् है। "दिव् उद्व्यञ्जने” 3163 सूत्र से 'व्' को उकार होकर 'भ्याम्' बना। दिव-स्वर्ग द्यौः दिवः / धुभ्याम् धुभ्यः हे दिवौ हे दिवः / दिवः धुभ्याम् दिवम् दिवौ दिवः दिवोः दिवाम् दिवा धुभ्याम् धुभिः दिवि दिवोः धुषु वकारांत शब्द हुए। शकारान्त स्त्रीलिंग दृश् शब्द है। दृश् + सि “चवर्गदृगादीनां च” सूत्र से 'ग्' पदांते धुटां प्रथम: से क् होकर 'दृक्, दृग्' बना। गीः गिरौ गीभिः दिवौ दिवे हे द्यौः धुभ्यः दिवः 1. यह सूत्र पहले आ चुका है।