________________ कातन्त्ररूपमाला 116 स्रग् / स्रजौ / स्रजः / स्रक्षु / इत्यादि / झबटवर्गान्ता अप्रसिद्धा: / तकारान्त: स्त्रीलिङ्गो विद्युच्छब्दः / विद्युत्, विद्युद् / विद्युतौ / विद्युतः / इत्यादि / थकारान्तोऽप्रसिद्धः / दकारान्त: स्त्रीलिङ्गः शरद् शब्दः / शरत्, शरद् / शरदौ / शरदः / एवं संविद् विपद् परिषद् प्रभृतयः / त्यद्शब्दस्य तु भेदः / त्यदाद्यत्वं / स्त्रियामादेत्यादिना त्वक्षु | स्रजे त्वच्+सि है "चवर्गदृगादीनां च” इस २५४वें सूत्र से विराम और व्यञ्जनादि विभक्ति के आने पर 'च' को 'ग्' हो गया एवं “पदांते धुटां प्रथम:” सूत्र से विकल्प से प्रथम अक्षर होकर त्वक् त्वग् बना। . त्वच-छाल त्वक, त्वग् त्वचौ. त्वचः / त्वचे त्वग्भ्याम् त्वग्भ्यः हे त्वक, त्वग् हे त्वचौ हे त्वचः / त्वचः त्वग्भ्याम् त्वग्भ्यः त्वचम् त्वचौ त्वचः त्वचः त्वचोः त्वचाम् त्वचा त्वाभ्याम् त्वग्भिः / त्वचि त्वचोः 'वाच' शब्द के रूप भी इसी प्रकार से चलेंगे। छकारान्त शब्द अप्रसिद्ध हैं। अब जकारान्त स्रज् शब्द है। स्रज्+ सि= स्रक् स्रग्। पूर्वोक्त २५४वें सूत्र से ग् होकर रूप बन गया। . स्रज्–माला स्रक, स्रग् सजौ स्रजः स्त्रग्भ्याम् स्रग्भ्यः हे स्रक्, स्रग् हे स्रजी हे स्रजः स्त्रजः स्रग्भ्याम् स्त्रग्भ्यः स्त्रजम् स्रजो स्रजः स्रजः स्रजोः स्रजाम् स्रजा स्रग्भ्याम् स्रग्भिः / स्रजि स्रजोः स्रक्षु झ, ब और टवर्गान्त शब्द स्त्रीलिंग में अप्रसिद्ध हैं,। अब तकारान्त स्त्रीलिंग विद्युत् शब्द है। विद्युत्+सि= विद्युत्, विद्युद् बना। 'सि' का लोप होकर “वा विरामे" सूत्र से प्रथम अक्षर भी हो गया। विद्युत्-बिजली विद्युत् ,विद्युद् विद्युतौ विद्युतः / विद्युते / विद्युभ्याम् विद्युद्भ्यः हे विद्युत् विद्युद् हे विद्युतौ विद्युतः विद्युद्भ्याम् विद्युभ्यः विद्युतम् विद्युतो विद्युतः विद्युतः विद्युतोः विद्युताम् विद्युता विद्युभ्याम् विद्युद्भिः / विद्युति विद्युत्सु थकारान्त स्त्रीलिंग अप्रसिद्ध है। दकारान्त शरद् शब्द के रूप भी इसी प्रकार से चलेंगे। शरदः शरत् शरद् शरदौ शरदे शरद्भ्याम् शरद्भ्यः हे शरत् शरद् हे शरदो हे शरदः / शरदः शरद्भ्याम् शरद्भ्यः शरदम् शरदौ शरदः शरदः शरदोः शरदाम् शरदा शरभ्याम् शरदिः / शरदि शरत्सु संविद्, विपद् और परिषद् आदि के रूप भी इसी प्रकार से चलेंगे। त्यद् शब्द में कुछ भेद है। त्यद् +सि है। हे विद्युतः शरदः शरदोः