SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 कातन्त्ररूपमाला अद् व्यञ्जनेऽनक् // 308 // अग्वर्जितस्य इदं शब्दस्य अद्भवति व्यञ्जनादौ विभक्तौ परत: / आभ्याम् / तस्माद्भिस् भिर् // 309 // तस्मात्कृताकारादिदम: परो भिस् भिर् भवति / एभिः / अस्मै / आभ्याम् / एभ्यः। अस्मात् / आभ्याम्। एभ्यः / अस्य। अनयोः / एषाम्। अस्मिन् / अनयोः / एषु / अन्वादेशे पूर्ववत् / इति मकारान्ता: / यकारान्तोऽप्रसिद्धः / रेफान्त: पुल्लिङ्गश्चत्वारशब्दः / तस्य बहुवचनमेव। चत्वारः / चतुरो वाशब्दस्योत्वम्।।३१०॥ चत्वार् इत्येतस्य वाशब्दस्य उत्वं भवति अघुट्स्वरे व्यञ्जने च परे / चतुरः / न रेफस्य घोषवति // 311 // रेफस्य घोषवति परे विसर्जनीयो न भवति / चतुर्भिः / चतुर्थ्य: / चतुर्थ्य: / . आमि चतुरः // 312 // चत्वार् शब्दस्य नुरागमो भवति आमि परे / चतुर्णां / विसर्जनीये प्राप्ते / अग्वर्जित इदम् शब्द को व्यंजन आदि विभक्ति के आने पर 'अ' हो जाता है // 308 // 'अकारो दीर्घ घोषवति' आभ्याम् बना। इदम् + भिस् ‘अद् व्यंजनेऽनक्' सूत्र से इदम् को 'अ' होकर 'धुटि बहुत्वे त्वे' १४३वें सूत्र से बहुवचन में 'ए' होकर इदम् शब्द को अकार करने पर भिस् को भिर् हो जाता है // 309 // ए+भिर = एभिः। इदम् + ङे 'स्मै सर्वनाम्नः' १५३वें सूत्र से डे को स्मै होकर ३०८वें सूत्र से 'अ' होकर अस्मै बना। इदम्-यह अयम् अस्मात् आभ्याम् एभ्यः इमम्, एनम् इमौ, एनौ इमान, एनान् अनयोः, एनयोः एषाम् अनेन, एनेन आभ्याम् एभिः अनयो, एनयोः एषु आभ्याम् मकारांत शब्द हुए। यकारांत शब्द अप्रसिद्ध हैं। अब रकारांत चत्वार् शब्द है। वह बहुवचन में ही चलता है। चत्वार् + जस्= चत्वारः चत्वार इस शब्द के वा को उकार हो जाता है // 310 // अघुट् स्वर और व्यंजन के आने पर / चत्वार् + शस् = चतुरः / चत्वार् + भिस् / घोषवान् के आने पर रेफ को विसर्ग नहीं होता है // 311 // अत: चतुर्भि: / चत्वार् + आम् ____ आम् के आने पर चत्वार से नु का आगम होता है // 312 // चतुर्णाम् बना। चतुर् + सु 1. इदं सूत्रमैस्बाधनार्थ। अस्य अस्मिन् अस्मै
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy