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________________ 102 कातन्त्ररूपमाला षकारनकारान्तायाः संख्याया नुरागमो भवति आमि परे / दीर्घमामि सनौ इति अनुवर्तते। नान्तस्य चोपधायाः // 301 // नान्तस्य चोपधाया दीघों. भवति सनावामि परे। पञ्चानाम् / पञ्चसु / एवं सप्तन् नवम् दशन् प्रभृतयः / अष्ट-शब्दस्य तु भेदः / तस्यापि बहुवचनमेव।। . अष्टनः सर्वासु // 302 // अष्टन्शब्दान्तस्य आ भवति सर्वासु विभक्तिषु / येन विधिस्तदन्तस्य इति नकारस्य आकारः / सवर्णे दीर्घः। औ तस्माज्जस्शसोः // 303 // तस्मादष्टन: कृताकारात्परयोर्जश्शसो: स्थाने और्भवति / अष्टौ / अष्टौ। तस्माद्ग्रहणं किमर्थम्। आत्वस्यानित्यार्थं / तेन औत्वाभावे जश्शसोलुंक् इत्यनेन जश्शसोर्लोपः। अष्ट। अष्ट। अष्टाभिः, अष्टभिः / अष्टाभ्यः, अष्टभ्यः। अष्टाभ्यः, अष्टभ्यः। आमि आत्वं संख्याया: ष्णान्ताया इति, अत्र अन्तग्रहणाधिक्यात् भूतपूर्वनान्ताया अपि आमि नुरागमः / अष्टानाम् / अष्टसु, अष्टासु / इति नकारान्ताः / पफबभान्ता अप्रसिद्धाः / मकारान्त: पुल्लिङ्गः किम् शब्दः / सप्त सप्तभ्यः नवभ्यः सप्त नव सुनु और आम् के आने पर नांत की उपधा को दीर्घ हो जाता है // 301 // और न का लोप हो जाता है। पञ्चानाम् बना। पञ्च / पञ्च / पञ्चभिः / पञ्चभ्यः / पञ्चभ्यः / पञ्चानाम् / पञ्चसु। इसी प्रकार से सप्तन, नवन् और दशन् के रूप चलते हैं। यथानव... / दशभ्यः सप्तानाम् नवानाम् दश दशानाम् सप्तभिः सप्तसु नवभिः नवसु दशभिः दशसु सप्तभ्यः नवभ्यः दशभ्यः अष्टन् शब्द में कुछ भेद है। यह भी बहुवचन में ही चलता है। सभी विभक्तियों के आने पर अष्टन के अन्त को 'आ' हो जाता है // 302 // जिससे विधि हुई है वह अंत को हुई है अत: नकार को आकार हुआ। अष्टा+ जस् अष्टा+शस् अष्टन् शब्द को आकारांत करने के बाद जस् शस् के स्थान में औ आदेश हो जाता है // 303 // अष्टा+औ=अष्टौ बना। सूत्र में तस्माद् शब्द का ग्रहण क्यों किया है ? नकार को आकार किया गया है वह अनित्य है इस बात को सूचित करने के लिये ही तस्माद् पद का ग्रहण किया गया है। इसलिये जब जस् शस् को औ नहीं होगा तब 'जश्शसोलुंक' से जस् शस् का लोप एवं "लिंगांत नकारस्य” से नकार का लोप होकर अष्ट, अष्ट बना / न को 'आ' होने से अष्टाभि: अष्टाभ्य: / अष्टा+आम् “संख्यायाष्णान्ताया:" सूत्र से नु का आगम होकर अष्टानाम् बना / क्योंकि इस सूत्र में भी नकारांत पद से नु का आगम करने का विधान है अत: भूतपूर्व नकारांत होने से नु का आगम हुआ है / पुन: अष्टन् + आम् नु का आगम होकर अष्टानाम् बना।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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