________________ 96 - कातन्त्ररूपमाला हचतुर्थान्तस्य धातोस्तृतीयादेरादि चतुर्थत्वमकृतवत्॥२९० / / हचतुर्थान्तस्य तृतीयादेर्धातोरादि चतुर्थत्वं भवति विरामे व्यञ्जनादौ च / स चाकृतवत् / तत्त्वभुत्, तत्त्वभुद् / तत्त्वबुधौ / तत्त्वबुधः / संबोधनेऽपि तद्वत् / तत्त्वबुधा / तत्त्वभुद्भ्यां / तत्त्वभुद्भिः / इत्यादि / इति धकारान्ता: / नकाराऽन्त: पुल्लिङ्गः राजन् शब्दः / घुटि चासम्बुद्धाविति दीर्घः / लिङ्गान्तनकारस्येति नकारलोप: / राजा / राजानौ / राजानः। न सम्बुद्धौ // 291 // लिङ्गान्तनकारस्य लोपो न भवति सम्बुद्धौ। हे राजन्। राजानं। राजानौ (अघुट्स्वरे अवमसंयोगादनो इत्यादिना लोप:) तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवौं // 292 // अनन्त्यस्तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवर्गों प्राप्नोति आन्तरतम्यात् / राज्ञः / राज्ञा / व्यञ्जनादौ नलोप: / अकारो दीर्घ घोषवतीति दीर्घ प्राप्ते नसंयोगान्तावलुप्तवच्च पूर्वविधौ इति नकारोऽलुप्तवद्भवति / हकारांत और चतुर्थांत धातु के शब्द के ह अथवा चतुर्थ अक्षर को तृतीय अक्षर एवं चतुर्थ की आदि में तृतीय को अपने वर्ग का चतुर्थ अक्षर हो जाता है // 290 // विराम और व्यंजन वाली विभक्ति के आने पर पुन: ‘वा विरामे' से प्रथम अक्षर होकर तत्त्वबुध को तत्त्वभुत्, तत्त्वभुद् बना। तत्त्वबुध-तत्त्वों को जानने वाला तत्त्वभुत्, तत्त्वभुद् तत्त्वबुधौ तत्त्वबुधः हे तत्त्वभुत्, तत्त्वभुद् ! हे तत्त्वबुधौ ! हे तत्त्वबुधः ! तत्त्वबुधम् तत्त्वबुधौ तत्त्वबुधः , . तत्त्वबुधा तत्त्वभुद्भ्याम् तत्त्वभुद्भिः तत्त्वबुधे तत्त्वभुभ्याम् तत्त्वभुद्भ्यः तत्त्वबुधः तत्त्वभुद्भ्याम् तत्त्वभुद्भ्यः तत्त्वबुधः तत्त्वबुधोः तत्त्वंबुधाम् तत्त्वबुधि तत्त्वबुधोः तत्त्वभुत्सु / धकारान्त शब्द हुए अब नकारांत पुल्लिंग राजन् शब्द है / राजन् + सि “घुटि चासंबुद्धौ” से दीर्घ "व्यंजनाच्च” से सि का लोप “लिंगांतनकारस्य” से न का लोप राजा बना / राजन् + औ राजानौ / संबोधन में राजन + सि संबोधन में लिंगांत नकार का लोप नहीं होता है // 291 // अत: सि का लोप होकर हे राजन् ! बना। राजन+शस 'अघुट् स्वरे अवमसंयोगादनो' इस सूत्र से अन् के 'अ' का लोप तब राजन् + अस् रहा। तवर्ग को चवर्ग और टवर्ग के योग में चवर्ग और टवर्ग हो जाता है // 292 // अर्थात् तवर्ग के अंत में नहीं हो तब चवर्ग और टवर्ग के आने पर उसी क्रम से चवर्ग और टवर्ग हो जाता है / यहाँ नकार तवर्ग का अंतिम अक्षर है उसे ज् के निमित्त से चवर्ग का अंतिम अक्षर कार हआ। 'जजोर्जः' इस नियम से ज और बके मिलने पर ज्ञ होकर 'राज्ञः' बन गया।