________________ 94 कातन्त्ररूपमाला संबोधनेऽपि तद्वत् / अग्निमथं / अग्निमथौ। अग्निमथ: / अग्निमथा। अग्निमद्भ्यां / अग्निमद्भिः / इत्यादि / इति थकारान्ता: / दकारान्त: पुल्लिङ्गस्तत्त्वविद्शब्दः / तत्त्ववित, तत्त्वविद् / तत्त्वविदौ / तत्त्वविदः इत्यादि / द्विपाद्शब्दस्य तु भेद: / द्विपाद, द्विपादौ / द्विपाद: / सम्बोधनेऽपि तद्वत् / द्विपादं / द्विपादौ / शसादौ पात्पदं समासान्तः // 287 // समासान्त: पाच्छब्दः पदमापद्यते अघुटि स्वरे परे। द्विपदः द्विपदा। द्विपाझ्यामित्यादि। एवं चतुष्पाद् व्याघ्रपाद् प्रभृतयः / त्यद्शब्दस्य तु भेदः / सौअग्निमत्, अग्निमद् अग्निमथौ अग्निमथः हे अग्निमत्, अग्निमद् ! हे अग्निमथौ ! हे अग्निमथः ! अग्निमथम् अग्निमथौ अग्निमथः अग्निमथा अग्निमद्भ्याम् अग्निमद्भिः ... अग्निमथे अग्निमद्भ्याम् अग्निमद्भ्यः अग्निमथः अग्निमद्भ्याम् अग्निमद्भ्यः / अग्निमथः अग्निमथोः अग्निमथाम् अग्निमथि अग्निमथोः अग्निमत्सु थकारांत शब्द हुए। अब दकारांत तत्त्वविद् शब्द है। तत्त्वविद+सि, सि का लोप एवं विकल्प से प्रथम अक्षर करके रूप चलेगा। __तत्त्वविद्-तत्त्वों का जानने वाला तत्त्ववित्, तत्त्वविद् तत्त्वविदो तत्त्वविदः हे तत्त्ववित्, तत्त्वविद् ! हे तत्त्वविदौ ! हे तत्त्वविदः ! तत्त्वविदम् तत्त्वविदो तत्त्वविदः . तत्त्वविदा तत्त्वविद्भ्याम् तत्त्वविद्भिः तत्त्वविदे तत्त्वविद्भ्याम् तत्त्वविद्भ्यः तत्त्वविदः तत्त्वविद्भ्याम् तत्त्वविद्भ्यः तत्त्वविदः तत्त्वविदोः तत्त्वविदाम् तत्त्वविदि तत्त्वविदोः तत्त्ववित्सु द्विपाद् शब्द में कुछ भेद है घुट विभक्तियों तक कुछ भेद नहीं है / द्विपाद् + शस् समासांत पाद् शब्द अघुट् स्वर और व्यंजन के आने पर पद् हो जाता है // 287 // द्विपाद्+शस्= द्विपद्+शस= द्विपदः बना। द्विपाद् द्विपादौ द्विपादः / द्विपदे द्विपाभ्याम् द्विपाद्भ्यः हे द्विपाद् ! हे द्विपादौ ! हे द्विपादः ! | द्विपदः द्विपाद्भ्याम् द्विपाद्भ्यः द्विपादम् द्विपादौ द्विपदः द्विपादोः द्विपदाम् द्विपदा द्विपाद्भ्याम् द्विपाद्भिः / द्विपदि द्विपादोः इसी प्रकार से चतुष्पाद् व्याघ्रपाद् आदि शब्द चलते हैं। त्यद् शब्द में कुछ भेद हैं। त्यद+सि "त्यदादीनाम् विभक्तौ” से अकारांत 'त्य' रहा पुन: द्विपदः द्विपात्सु