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________________ व्यञ्जनान्ता: पुल्लिङ्गाः अभ्यस्तादन्तिरनकारः // 285 // अभ्यस्तात्परोऽन्तिरनकारो भवति घुटि परे / ददत्, ददद् / ददतौ / ददतः / इत्यादि / एवं दधन्त् जक्षन्त् जाग्रन्त् प्रभृतयः / महन्त्शब्दस्य तु भेदः / दीर्घमामि सनौ, घुटि चासम्बुद्धौ इति वर्तते / सान्तमहतोर्नोपधायाः // 286 // सान्त् महन्त् इत्येतयो कारस्योपधाया दीपो भवति असम्बुद्धौ घुटि परे। महान्। महान्तौ / महान्त: / हे महन् / हे महान्तौ / हे महान्त: / महान्तं / महान्तौ / महत: / महता। महद्भ्यां / महद्भिः / इत्यादि // इति तकारान्ताः / थकारान्तोऽग्निमथ् शब्दः / अग्निमत्, अम्निमद् / अग्निमथौ / अग्निमथः / ददता भवते भवद्भ्याम् . भवद्भ्यः / भवतः भवतोः भवताम् भवतः भवद्भ्याम् भवद्भ्यः / भवति भवतोः भवत्सु इसी प्रकार से पठन्त् पचन्त् गच्छन्त् आदि के रूप चलेंगे। ददन्त् शब्द में कुछ भेद हैं। ददन्त्+सि अभ्यस्त संज्ञक से परे घुट विभक्ति के आने पर अन्त के नकार का लोप हो जाता है // 285 // पुन: ‘वा विरामे' से विकल्प से प्रथम अक्षर होकर ददत्, ददद् ऐसे दो रूप बने / ददन्त्-देते हुए ददत्, ददद् - ददतौ ददतः ! / ददते ददद्भ्याम् ददद्भ्यः हे ददत् ! हे ददतौ ! हे ददतः ! | ददतः ददद्भ्याम् ददद्भ्यः ददतम् ददतौ ददतः ददतः ददतोः ददताम् ददद्भ्याम् ददभिः ददति ददतोः ददत्सु इसी प्रकार से दधन्त, जक्षन्त, जाग्रन्त् आदि के रूप चलते हैं। महन्त् शब्द में कुछ भेद है। 'दीर्घमामिसनौ' 'घुटि चा सम्बुद्धौ' सूत्र अनुवृत्ति में चले आ रहे हैं। महन्त् + सि असंबुद्ध और घुट विभक्ति के आने पर सकारांत और महन्त् शब्द के नकार की उपधा को दीर्घ हो जाता है // 286 // महान्त् + सि सि और संयुक्त त् का लोप होकर महान् बना। ___ महन्त्-बड़ा-श्रेष्ठ महान् महान्तौ महान्तः / महते महद्भ्याम् महद्भ्यः हे महन् ! हे महान्तौ ! हे महान्तः !| महतः महद्भ्याम् महद्भ्यः महान्तम् महान्तौ महतः महतः महतोः महताम् महता. महद्भ्याम् महद्भिः महति महतोः महत्सु इस प्रकार से तकारांत शब्द पूर्ण हुए अब थकारांत अग्निमथ् शब्द है। अग्निपथ्+सि 'धुटां तृतीयः' से तृतीय अक्षर एवं ‘वा विरामे' प्रथम अक्षर होकर अग्निमत्, अग्निमद् शब्द बना। १.वा विरामे धुटां तृतीय इति थकारस्य दकारः।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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