________________ 74 कातन्त्ररूपमाला अवमसंयोगात्परस्य अनोऽकारस्य लोपो भवति अघुटि स्वरे परे स चालुप्तवद्भवति पूर्वस्य वर्णस्य विधौ कर्तव्ये। अस्थ्या ! अस्थिभ्याम् / अस्थिभिः / अस्थथे। अस्थिभ्याम् / अस्थिभ्यः। अस्थः / अस्थिभ्याम् / अस्थिभ्यः / अस्थमः / अस्योः। अस्याम्। ईयोर्वा // 251 // अवमसंयोगात्परस्य अनोऽकारस्य लोपो भवति वा ईङ्योः नपुंसकलिंगे औकारादेशे ईकारे सप्तम्येकवचने परत: स चालुप्तवद्भवति पूर्वस्य वर्णस्य विधौ कर्तव्ये। अस्थि, अस्थनि / अस्योः। अस्थिषु / एवं दधि सक्थि अक्षिशब्दाः / शुचिशब्दस्य प्रथमाद्वितीययोर्वारिशब्दवत् / शुचि / शुचिनी। शुचीनि / सम्बुद्धावविशेषः / पुनरपि-शुचि / शुचिनी / शुचीनि / टादौ भाषितपुंस्कं पुंवद्वा // 252 // नाम्यन्तं भाषितपुंस्कं नपुंसकलिङ्गं टादौ स्वरे वा पुंवद्भवति। अस्थन् + आ = अस्था, अस्थिभ्याम् आदि / अस्थन्+ङि ई और डि के आने पर अन् के अकार का लोप विकल्प से होता है // 251 // जिसमें व, म संयुक्त नहीं है ऐसे शब्दों से परे औ के ई आदेश वाली ङि विभक्ति के आने पर अन् के अकार का लोप विकल्प से होता है। तब अस्थ् + इ =अस्थि, अस्थनि। अस्थि अस्थिनी अस्थीनि / अस्थने अस्थिभ्याम् अस्थिभ्यः हे अस्थे / हे अस्थि ! हे अस्थिनी / हे अस्थीनि !| अस्थनः अस्थिभ्याम् . अस्थिभ्यः अस्थि अस्थिनी अस्थीनि / अस्थनः अस्योः अस्थ्याम् अस्थमा अस्थिभ्याम् अस्थिभिः / अस्थि, अस्थनि अस्योः अस्थिषु इसी प्रकार से दधि, सक्थि और अक्षि शब्दों के रूप चलते हैं। यथाअक्षि अक्षिणी अक्षीणि / अक्ष्णे अक्षिभ्याम् अक्षिभ्यः हे अक्षे.हे अक्षि ! हे अक्षिणी ! हे अक्षीणि ! | अक्ष्णः अक्षिभ्याम् अक्षिभ्यः अक्षि अक्षिणी अक्षीणि अक्ष्णः अक्ष्णोः अक्ष्णाम् अक्ष्णा अक्षिभ्याम् अक्षिभिः अक्ष्णि, अक्षणि अक्ष्णोः अक्षिषु शुचि शब्द के रूप प्रथमा द्वितीया में अक्षिवत् ही चलेंगे। टा आदि विभक्ति के आने पर शुचि शब्द के रूपों में कुछ भेद है। शुचि+ आ टा आदि स्वर वाली विभक्ति के आने पर नाम्यंत भाषितपुंस्क शब्द, नपुंसक लिंग में विकल्प से पुरुष लिंगवत् हो जाते हैं // 252 // भाषित पुंस्क किसे कहते हैं ? 1. एक एव हि यः शब्दस्त्रिषु लिंगेषु वर्त्तते / एकमेवार्थमाख्याति तद्धि भाषितपुंसकं /