________________ विचारविन्दुः जे ए सूत्रनि वर्णनमात्र कहै छै ते स्वर्गादिसूत्र वर्णनमात्र कहै तो कोण वारे ! तथा मांसभक्षणिं सम्यक्त्व नाश होइ तो मूलप्रायश्चित्त जोईइ. कहिउं छै तप प्रायश्चित्त तथाहि चउगुरुणंते चउलहु, परित्तभोगे सचित्तवजिस्स। मंसासयवयभंगे, छग्गुरु चउगुरु अणाभोगे // श्राद्धजितकल्पे / इत्यादिक बोल विचारीनइ गुरुसंप्रदाइ सद्दहवा // इति श्रीतपागच्छाधिराजभट्टारकधीहीरविजयसूरीश्वरशिष्योपाध्यायकल्याणविजयगण संतानीयपं.श्रीनयविजयगणिशिष्योपाध्यायश्रीयशोविजयविरचितं स्वोपक्षधर्मपरीक्षावृत्तिपातिक समाप्तम् // एष बिन्दुरिह धर्मपरीक्षा-वाइमयामृतसमुद्रसमुत्थः। . .. नन्दताद्विषकारविनाशी, व्योम यावदधितिष्ठति भानुः // 1 // इत्यादि सर्वे बोल हठ मूकोने विचारी जोजो // ___-इति विचारबिन्दुः सम्पूर्णः॥ लिखितश्च संवत् 1726 मिते पोषमासे चतुर्दश्यां तिथौ रविवारे श्रीस्तम्भतीर्थवन्दिरे। श्रीरस्तु श्रीश्रमणसंघस्य श्रीः श्रीश्रीः / / इति उपाध्यायश्रीजलविजयगणिकृतधर्मपरीक्षाग्रन्थगत-विधारबिंदुः' संपूर्णः // // श्लो. स. 676 // [संपादन * संशोधन समय वि. सं. 2017 ] नोंध-विचारबिन्दुनी एक प्रति पालीताणा जैन साहित्यमंदिरना आ. श्री विजयमोहनसूरीश्वर शास्त्र संग्रह * (.९६९)नी हती. आ प्रति अतिजीर्ण जल तथा जीवातथी नीचेना भागथी खवाइ गई हती, छतां आ प्रति वि. स. 1726 होवाथी-उपाध्यायजीनी याती दरमियान लखाएली होवाथी अतिमहत्त्वनी हती / एना उपरथी प्रेस कोपी करी अने खंडित लखाणना अनुसन्धान माटे सद्भाग्ये अमदावादना हाजापटेलनी पोलना संवेगी उपाश्रयमाथी आ विचारबिन्दुनी बीजी प्रति (नं. 3002) मली आवी, जे प्रायः १९मा सैकानी हतो, आ प्रति उपरथी खंडित भागने अखण्डित कयों छे. संपा.