________________ उपाध्याययशोविजयविरचित 'अभयदयाणं' ए वचनथी केवलियोगथी कोइनइ भय न उपनई इम कल्पीई, अनइ श्रीमहावोरथी हाली नाठो, तिहां हालीना योग कारण पणि श्रीमहावीरना योग कारण नहीं इम कोई कहई छई, तेणइ 'मंतामतिमं अभयं विदित्ता' ए आचारांग वचनप्रामाण्यथी साधुनइ चारित्र पणि जीवामयहेतु छइ, तेणेइ साधुयोगथी पणि सत्वघात न कहिओ जोइइ भापननइं भयाश्रवपणानो भय तो इग्यारमई गुणठाण पणि ताहरइ न टलइ // 52 // जलचारणादिकनई जलादिकमांहि चालतां जिम जीवविराधना नथी, तिम केवलीनई लब्धिविशेषई घटइं इम कोइ कहई छई, तेणइ विचारवू जे; लब्धि केवलि किम प्रयुंजई, अप्रयुक्तलब्धि वधाभाव तेरमइ गुणठाणई मानइं, उदमि गुणठाणिं स्युं तुहारुं विराध्यु छइं // 53 // : एणि करी अमृतमय शरीर केवलीनइ कोई कहइ छइ, तेह पणि निराकरिउ जाणवू, इम तो परमौदारिकशरीरवादी दिगंबरमतानुसरणे थाई ते प्रीछन्यो. // 54 // द्रव्यवधथी जिननई 18 दोषरहितपणुं न होइ इम कोइ कहइं छइ, तेणइ द्रव्यपरिग्रहथी 18 दोषरहितपणुं किम सद्दहवं ? // 55 // मांमाशनई सम्यक्त्व न होइन, एहवं जे कहइ छई, तेहनि पूछीई, जे-मूलकादिभक्षणिं सम्यक्त्व न जाई, तो मांक्षभक्षणिं किम जाई ? अति निंद्य मांसभक्षणइं प्रवचनमालिन्यथी सम्यक्त्व जाइ इम जो सदहो, तो तेहथो अतिनिद्य परदारगमनई सत्यकिप्रमुखनइं सम्यक्त्व किम रहई, बिलवासी मनुष्य पणि तथाविध क्षयोपशमथी मांसभक्षण परिहहइ छई, तो सम्यग्दृष्टि किम न परिहरइ ? इम कहस्यो तो चोर प्रमुख परिदारगमन परिहरइ छई, तो समकितदृष्टि सत्यकि प्रमुख किम न परिहरई ते विचारज्यो. श्रद्धान छतइ अनुचितप्रवृत्तिं सम्यक्त्व न जाई, ए उत्तर बेहुनई समान / मांसासनई नरकायुबंधहेतुपणुं छइं, ते माटि तेहनी अनिवृत्ति जो सम्यक्त्व न रहई, तो महारंभपरिग्रहादिकनइ पण तथाभाव छई, तेणई करी तेहथी अनिवृत्तिं कृष्णादिकनई सम्यक्त्व किम होइ ? / तए ण दुवे राया कंपिल्लपुरं णगरं अणुपविसइ अणुपविसित्ता विउलं असणं 4 उवक्खडरवेइ उवक्खडावेत्ता को९वियपुरिसे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासो, गच्छह णं तुमे (न्भे) देवाणुप्पिया ! विरलं असणं 4 सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसणं. च सुबहुपुप्फलवत्गंधलंल्लालंकारं वासुदेवप्पाभरिखाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह ते वि साहरंति तए ण ते वासुदेवप्पामोक्खानं वि उलं असणं 4 जाव पसन्नं आसाएमाणा 2 विहरंति" [ज्ञा. सू. 118] . ए ज्ञातासूत्रमध्ये कहिउं छई, तेणि करि वासुदेवनिइं नइ-मांसभक्षणिं करी सम्यक्त्व नथी गयुं, तो बीजानिं किम जाइ ? इहां वासुदेवपरिवार मिथ्यादृष्टिनि भांसभक्षण कहिउँ पणि वासुदेवनि नहीं, इम न कहवं, जे माहिं एक क्रियान्वय विना प्रमुख शब्दार्थ न घटइ / वि. बि. 4