________________ विचारविन्दुः तेणइ ते सयोगिकेवलिकर्तृक पणि थइ जाइ, एहवं कोइ कहइ छइ, तेणि सर्ववृत्तिवचन लोप्यु जे मार्टि,-प्रमत्त विना कोइ शास्त्रि प्राणातिपात कर्ता कहिओ नथी, ते माटइं इहां कर्त्तकार्यभाव संबंधइ विचार नथी, पणि कारककारकिभावसंबंधइ विचार छई ते जाणवू // 46 // जे कोइ कहई छई-"उपशान्तक्षीणमोहसयोगिकेवलिनाम्" [ ] ए समुच्चय, 'नरनारकातर्यग्देवाः कर्मबन्धकाः' ए समुच्चयनी परि सर्वाशइ नहीं जे द्रव्यवधई साम्य आवई किंतु महोदयाभावि ते जूटुं, जे मार्टि-उपात्तक्रियानी अपेक्षाइंज समुच्चय भावइ ते जिम कर्मबन्धकत्वापेक्षाई नरादिकनइ तम जीववधनिमित्तक सामायिकबंधनो अपेक्षाई उपशांतमोहादिकनइ इम सदहवं, अत एव - "सेलेसीपडिवण्णस्स जे सत्ता फरिसं पप्प उद्दायंति मसगादि तत्थ कम्मबंधी णस्थि, सजोगिस्स कम्मबंधो दो सवया, जो अपमत्तो उद्दावई तस्स जहण्णेणं अंतमुहुत्तं उक्कोसेणं अद्र मुहुत्ता, जो पुण पमत्तो ण य आउट्टियाए तस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण अट्ठ संवच्छराई, जो पुण आउट्टियाए पाणे उवद्दावइ तस्स तवो वा छेभो वा वेयावडियं वा करेइ[ ] ए आचारांगचूर्णिवचनई सयोगिनई स्पष्ट द्रव्यवधई सामायिकबंध जणाइ छइं // 47 // जो रक्षकयोगीनई सयोगिनई द्रव्यवधाभावइं गुण छइ ते अयोगिनई तेहनइ अभावई हीनता थाई, जे माटि-आवश्यकादिक क्रियानइं अभाविं पणि जिम तेहनु फल केवलीनई, छई, तिम अयोगिनई योगफलद्रव्यवधप्रतिबंध तुम्हइ नथी कहता // 48 // , 'अणासवो केवली ठाणं सव्वजिआणमहिंसं' इत्यादि वचनथी जे केवलीनइं अहिंसाऽतिशय कल्पई छई तेहनई सयोगिना योगथी द्रव्यवध म हो, पाणि मशकादियोगथी थातें श्यो बाध ? केवलियोगप्रतिबंधक कहई तो बारमइ गुणठाणि प्रसंग क्षीणमोह योगपणइं प्रतिबंधकता कल्पई तो, मोहाक्षपकनई तथाभाव कल्पीनई चउदमि गुणठाणिं पाणि किम ना न कहइ ? ते माटि सर्व ए सूत्रविरुद्ध कल्पना // 19 // केवली योगस्वरूपई जीवघात प्रतिबंधक होई, तो प्रतिलेखनादि व्यापार व्यर्थ होई, व्यापारइं प्रतिबंधक कहइं तो जे जीववध टालु न टलई ते, होतां ना किम कहिवाई, अंतथी बादरवायुकायजलजीवादिविराधना न टलै // 50 // जिम पुप्फच्ला अचित्तप्रदेशि आव्यां, तिम सर्वकेवलिं अचित्त जलादि प्रदेशि ज विहार करइ, तथा केवाले विहार करइ ति वारइ कीडो प्रमुख केवलियोगथो भय न पामइ इम न विचारई, इम कोइ कहइ छई, ते कोइ ग्रंथि नथी कहिउं. इम होइ उल्लंघन प्रलंधनादिव्यापार व्यर्थ थाई // 51 //