________________ विचारबिन्दुः इत्यादिक बलभद्रनां वचन कहियां छै, अनि तेहनि तो अल्पज संसार छै, ते मार्टि उत्सूत्रभाषीनी पणिं परिणामविशेषि संख्यातादिक त्रिविध संसार संभवै / अनंत ते व्यवहार भाषाई ज कहवाइ ते माटि विचारीनिं जोवो // 1 // कर्या पापर्नु प्रायश्चित इह भविं न होइ, पणि उत्सूत्र भाषणादिक पापनी प्रायश्चित्त जन्मान्तरनिं विषै न होइ इत्यादिक कोइक कहै छै तिहां 'जावाऽऽऊ सावसेस' [सं. 258] इत्यादिक उपदेशमालानी गाथानी संमति कहै छै ते न घटे, जे माटिं ते गाथामां प्रमाद परिहारनो अर्थ छै, पणि ते अ- - - र्घा, तथा कालीदेवी प्रमुखनि अनंतभव अंतर विना भवांतरिज प्रायश्चित्त कहिउँ छै जे मार्टि दीक्षा, ते भवांतर सर्व पापर्नु प्रायश्चित्त छै। . सव्वा वि हु पवज्जा पायच्छित्तं भवंतरकडाणं / [गा० 50] - ___ इत्यादि हरिभद्रवचनानुसारि तथा 'इहभवियमन्नभवियं' चतुःशरण प्रकीर्णके [चउ.५०]। 'इहं वा भवे अन्नेसु वा भवग्गहणेसु' पाक्षिकसूत्रे [ महानतदण्डकगतपाठे ] / 'इत्थं वा जम्मे जम्मंतरेसु वा' पञ्चसूत्रे / [पृ. 5, सू.९] कोइक कहैस्यै ए अक्षरथी हिंसादिक पापर्नु प्रायश्चित्त भवांतरि कहिउ, पणि उत्सूत्रभाषनुं न होइ ते जूटुं, जे मार्टि 'अरिहंतेसु वा' [ सू. 9] इत्यादिक पंचसूत्रि कहिउं छै / अनि बाहुल्याभिप्राइं तो हिंसादिक पापनो पणि अनंत अनुबंध कहिओ छै इति / "से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुवमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ" [ ] इत्यादिक आचारांगमध्ये, ते माटि इह भविं तथा भवांतरं प्रायश्चित्त आश्रि पणि परिणाम विशेषज अनुसरवो // 2 // मिथ्यात्वमध्ये अनाभोगमिथ्यात्व अव्यक्त बीजां ध्यार व्यक्त, तिहां अभव्यनि अव्यक्त मिथ्यात्व ज होइ, भव्यनि बेहू होई एहवं कोइ कहै छै ते जूटुं जे मार्टि अभव्याश्रितमिथ्यात्वेऽनाधनन्ता स्थितिर्भवेत् / [गा० 10] गुणस्थानकमारोहग्रंथिः, 'अभव्यानाश्रित्य मिथ्यात्वे सामान्येन व्यक्ताऽव्यक्तविषये एहवं' वृत्ति लिल्यु छै / तथा 'अधम्मे अधम्मसन्ना' / इत्यादिक व्यक्तमिथ्यात्व, द्रव्यदीक्षा लेई अवियकिं जाई छै जे अभव्य तेहनि प्रगट दीसे छै / तेहनि व्यवहारिं व्यक्त अनि निश्चयथी अव्यक्त, एहवं जि कोइ कुकल्पना करै छै तेह तो बोजाइ मिथ्यात्वीनि कहिई तो कहवाइ, पणि एकवार बाह्यव्यक्त अंतरअव्यक्त, ए बेहु उपयोग जिनशासनं जाणे ते किम भाख // 3 // 1. हरिभद्रसूरिना वचननइ अनुसारई।