________________ M इति चतुर्थकाण्डोत-संदिर लिंगनिमः / लिखित स्माबले निला कल्यायोदधिमरिया // 23 // स्वप्रतालिगभेदोऽत्र लेयः सोऽन्यग्रतात्र किल / विचार्य धिषणाबङ्गिः सूरिभिःर्षदर्शिभिः // 237 // इति सुर्यकाण्डोक्त-लिङ्गनिर्णयः समासः // 4 // अथ पञ्चम-काण्डोक्तो लिंगनिर्णयो लिख्यते परता नाका प्रेताः यात्यास्तथातिवाहिकाः / पौते कात्तिताः पुंसि विष्टिराजूः स्त्रियामपि / मरक-त्रितयं पुंसि दुर्गतिः पुंस्त्रियोरिह / स्मात् पातालादिकं क्लीबे नागलोको नरे मलः // 2 // रसातलं भवेवस्त्री शषिरं वाच्यलिंगकम / सुषिर्चपा खियां छिद्रमन्तरं पुनपुंसके // 3 // द्वयोगत्तोऽवटो पुंसि क्लीबमगाधमेव च / विषु बरो भुवः छिद्रे भयं नाम्नि दरोऽलियाम // 5 // ____ इति पञ्चमकाण्डोक्त-लिंगनिर्णयः समाः // 5 // अथ षष्ठ-काण्डोक्त-लिंगनिर्णयो लिख्यते विश्वं क्लीवे नरे लोको विपं पिष्टपं मतम् / संसारो भुक्तं चेते त्रयः स्युः पुनपुंसके // 1 // जगती स्त्री जगत क्लीवं क्षेत्रलो वाच्य लिंगकः / आत्मा भवी तथा जीवोऽसुमान जन्युभ देहभृत // 2 // पुल्लिगवाचका एते सत्त्वं तु जन्तुरस्त्रियाम् / उत्पत्तिश्च जनिर्नार्या क्लीवे जन्मजनुदयम् // 3 // जीवसिष्वसवः प्राणाः पुंसि बहुत्ववाचिनः / / जीवितं क्लीबर्विोऽपि जीवातुः पुंनपुंसके // 4 // श्वसितं पपडके पोक्तं पुसि वासस्तु भेदकः / भारः क्लीवे पुनः कभिवन्तः पुंसि भानुक्त // 5 // .