________________ अन्त करण-मुख्याश्च क्लीने संकल्प एव ना।.. क्लीके शर्म पाः शर्म शातं सात सुवादिकम् // 6 // निर्वति-वेदना पीडा व्यथा चार्ति स्त्रियामपि / बाधा द्वयोः परे क्लीबे कष्टं त्रिष्वाधिरेव ना // 7 // सपत्राकृति-निष्पत्राकृति-क्षुधः स्त्रियामिमे / व्यापादः पुंस्युपज्ञा स्त्री चर्चा संख्या विचारणा // 8 // स्त्रियां कश्चित्तरे को कासना भावना स्त्रियाम् / , संस्कारो निर्णयोन्तश्च तिश्चषस्तु नरेऽप्यमी // 9 // स्यात् संप्रधारणाऽविद्या भ्रान्ति मिथ्यामतिः स्त्रियाम् / स्त्रीपुंसयोः भ्रमः पुंसि सन्देहो छापरोऽस्त्रियाम् // 10 // आरेका विचिकित्सा स्त्री पुंसि क्लीवे च संशयः / परभागादयः पुंसि स्यात् स्वरूपं स्वलक्षणम् // 11 // क्लीबे, पुंसि स्वभावात्मानौ रीतिः प्रकृतिः त्रिपाम् / सहजस्त्रिषु पुल्लिंगे सो निसर्ग एव च // 12 // धर्मः शीलं तथा स्नेहः प्रेमापूर्वोऽस्त्रियाममी / स्यात् संसिद्धिरवस्था च दशा प्रीतिः स्थितिः खियाम् // 13 // क्लीबे हाई च दाक्षिण्यं स्त्रीलिंगे चानुकूलता / पुंसि विप्रतिसारश्चानुशय-त्रितयं तथा // 14 // अवधानं समाधानं प्रणिधानं नसके / समाधिश्च वृषः पुंसि धर्मोऽस्त्री पुण्यसुकृते // 15 // श्रेयः क्लीबे विधिः पुंसि दैवोऽस्त्री नियतिः खियाम् / भाग्यं तु भागधेयं च दिष्टं क्लीबे नरे त्वयः // 16 // अलक्ष्मी-निऋति-कालकर्णिका च त्रयः स्त्रियाम् / पातकं कष्मषं कल्कं पङ्को रजोऽस्त्रियामिमे // 17 // अशुभाधा अघप्रान्ता क्लीबे पाप्मा पुनर्नरि / कलौ शहरकं चास्त्री पुमानुपाधिरेव च // 18 // स्वगुणे वर्तमानाः स्युः पुण्यपापसुखादयः / यथोक्तलिंगिनः प्रोक्तास्त्रिलिंगे तद्वति स्मृताः॥१९॥ पुंसि प्रमादछेदी द्वावभिप्रायाशयावुभौ / भावः शेषोऽस्त्रियां प्राय आकृतामा नपुंसके // 20 //