________________ फटः स्फट: फणश्चात्र स्त्रीपुंसयोस्त्रयोप्यमी / कश्चित् क्लीबे फणं वक्ति कञ्चुकः पुनपुंसके // 221 // विहगाद्याः पुनः पुंसि वयः क्लीबे च विः स्त्रियाम् / खगे पुंसि विहायाश्च चञ्चु-चतुष्टयी स्त्रियाम् // 222 // पत्रं पतत्रं पिच्छे द्वे क्लीबे वाजो नरे पुनः / तनूरुहं गरुच्चास्त्री पुमान् पक्षः छदोऽस्त्रियाम् // 223 // स्त्रीलिंगे पक्षतिर्वाच्या प्रडीनाद्या नपुंसके / तत्पुरुष-समासेऽपि पेशीकोश इति स्मृतः // 224 // अण्डे कोशः स्त्रियां पेशी पेशिस्वण्डो मतान्तरे / कोशश्वाण्डोऽस्त्रियां कोषस्तथा कुलाय एव ना // 225 // नीडस्त्रिषु नरे केकीमुख्या केका स्त्रियामपि / बर्ह पुंक्लीबलिंगे स्यात् पुंसि शिखण्डकादयः // 226 // अस्त्रियां कुक्कुटो वाच्यः स्त्रीलिंगे वारलादयः / / दाघाटादयः पुंसि सारसी लक्ष्मणा स्त्रियाम् // 227 // लक्ष्मणा त्रिषु रौद्रस्तु कुक कौञ्चौ नरे पुनः / टापि कुञ्चा स्त्रियां वाच्या पुंसि चाषादयः पुनः // 228 // स्त्रीलिंगे चटका नूनं बलाका विसकण्ठिका / / सारिका तु पीतपादा गोराटी-प्रमुखा स्त्रियाम् // 229 // सि स्त्रियां च विज्ञेयं कर्करेटु-चतुष्टयम् / आटिरातिः शरारिश्च शब्दास्त्रयः स्त्रियामपि // 230 // कृकण-प्रमुखा पुंसि मत्स्ये च शफर-द्वयोः / प्रोष्ठी शृंगी स्त्रियां क्लीबे पोताधानं जलाणुकम् // 231 / / यादांसि क्लीबलिंगे स्युः नकादयो नरे मताः / कुलीरोऽप्यस्त्रियां ख्यातोऽसुरे कमठमेव च // 232 // कच्छपः कमठः पुंसि वर्षाभूश्च स्त्रियां नरे। पक्ष्यादि प्रसवेऽप्यण्डः पुनपुंसकवाचकः // 233 // उद्भिदः पुंसि विख्याताः क्लीबे चोद्भिज्जमुद्भिदम् / त्यक्ता अत्रापि ये शब्दास्ते स्वलिंगप्रकाशिनः // 234 // उक्ताः शेषाश्च ये शब्दास्ते प्रत्ययादिभेदतः / लिंगान्तरेण जायन्ते केचिदूह्याः स्वम्बुधैः // 235 //