________________ त्रिष्वाश्वीनः कवी नार्या खलीनं खलिनं पुनः / , कवियं चास्त्रियामेते कविका तलिका स्त्रियाम् // 206 // क्लीबे दामाञ्चनं प्रक्षरं पुनः प्रखरोऽस्त्रियाम् / चर्मदण्डोऽथवा दण्डो नरे नार्या कशात्रयम् // 207 // वल्गाद्वयोः हि पर्याण क्लीवे वीतद्वषं तथा / वेसराद्या नरे ख्यातास्तथर्षभो वृषादयः // 208 // नैचिकं च स्त्रियां क्लीबे, विषाणं त्रिषु कीर्तितम् / अस्त्रियां ककुदं शृंगं स्त्रियां सास्नाऽथ गौर्दयोः // 209 // सौरभेयादयो नार्यामापीनमस्त्रियामपि / ऊधः क्लीबेऽथ पुंक्लीबे करीषं गोमयं व्रजः // 21 // त्रिषु गव्यं च षण्डेऽपि गोकुलं गोधनं धनम् / प्रजनो प्रसरो पुंसि कीलः स्त्रीपुंसपोरिह // 211 // . स्त्रीक्लीवयोश्च दाम स्यात् स्त्रीलिंगे दामनी मता / संदानं क्लीबलिंगे स्युरजादयोऽपि मानवे // 212 // अजा तु छागिका मजा सर्वभक्षा गलस्तनी / . स्त्रियामिमेऽस्त्रियां मेषः पुंसि ते चर्करादयः // 213 // विशेषः कथ्यते तत्र मेषी-प्रभृतयः स्त्रियाम् / . . * अवि-सोढादयः क्लीबे सरमा च युनी स्त्रियाम् // 214 // अस्त्री द्वीपी शिवा नारी क्रोष्टा पुल्लंगवाचकः / क्रोष्ट्री किरिश्च योषायाम् स्त्रीक्लीवे कदली पुनः // 215 // त्रिलिंगे कन्दली प्रख्या पुंसि वातप्रमी पुनः / लियां वातप्रमीः ज्ञेयाः शल्पकः पुस्त्रियोरपि // 216 // त्रिलिंगे शललं प्रोक्तम् मिश्रास्तु शललोऽस्त्रियाम् / स्त्रियां गोधा निहाका च गौधेर-त्रितयं नरि // 215 // स्त्रीलिंगे मुसली-षट्कं कुड्य मत्स्यः पुमानपि / : गृहोलिकादयः स्त्रीत्वे हलाहलः पुनर्नरि // 218 // ब्राह्मणी-द्वितयं नार्या कृकलासादयो नरे। . अस्त्रियां मूषिकः पुंसिं मूषकादय एव च // 219 // स्त्रियां छुछुन्दरीमुख्या आखुरोतुरहियोः / साधा. अथ तदभेदा पुल्लिंगे गदिता इह // 220 // .