________________ मल्लिका स्त्रियोः कश्चित् कोशिकाऽपि तथैव हि / पारी कुतूश्च / योषायां कुतुपःः / पुनपुंसके // 72 // दृतिः खल्लस्तु पुंल्लिगे कश्चित्खल्लं नपुंसके / ... आलूः खियाममत्रं च क्लीबे पात्रं त्रिषु स्मृतम् // 73 // कपालं स्थालमादिष्टं स्त्रीक्लीबलिंगयोरिह / .. . पिधानं मलयोऽस्त्रीत्वे पुंसि शैलादयः पुनः // 74 // . शृंगं तु. शिखर कूटं कटकः पुं-नपुंसके / ... पुंस्यतटो भृगुश्चापि नितम्बस्त्रिषु कन्दरः // 75 // .. अस्त्रियां गह्वरं द्रोणी गुहा मिथः स्त्रियामपि / पादास्तु दन्तकाः पुंसि नार्यामधित्यका-द्वयी // 76. // स्नुः पुमानस्त्रियां प्रस्थं सानुश्च स्त्री दृषत् शिला / अश्मादयो नरेऽस्त्रीत्वे गण्डशैलोपलावपि // 77 // ..... स्यादाकरे द्वयोर्गजा खनिः खानिः स्त्रियामपि / ना धातुगैरिकं क्लीबे पाकशुल्कादिकं स्त्रियाम् // 78 // क्लीबे कालायसं शस्त्रं लोहं पारशवोऽस्त्रियाम् / गिरिसारं शिलासारं क्लीबे वा पुसि सम्मतः // 79 // अयः सिंहान-धूर्ते द्वे मण्डूरं सरणं पुनः / तैजसं क्लीबलिंगेऽमी कुशी स्त्रीलिंगवाचिनी // 8 // ताम्रादयोऽप्यतः क्लीबे विशेषस्तत्र कथ्यते / ससिं नागं च षण्ढेऽथ पुल्लिंगे वक्ति कश्चन // 81 // अस्त्रियां वर्धमादिष्टं स्वर्णारिः, पुंसि कीत्तितः / त्रपु त्रपुश्च षण्ढे स्यादस्त्रियां रजतं पुनः // 82 // . कश्चिद रूप्ये सिते हेम्नि रजतं त्रिषु वक्ति च / सुवर्ण स्वर्णमस्त्रीत्वे मनन्तं हेम षण्ढके // 83 // हेमशब्दोऽप्यकारान्तो हिरण्यं पुनपुंसके / ... हाटकं पुंसि षण्ढे वा वसु नपुंसके मतम् // 84 // अष्टापदं नराबे रा द्वयोश्चन्द्रमा स्त्रियाम् / क्लीबे मर्म तथा मर्मार्जुनं निष्कोऽस्त्रियामपि // 85 // भूरि षण्ढे नरे भूरिः कश्चित् शृंगी तु योषिति। .. स्याद् धनगोलकोऽप्यस्त्री स्त्रीक्लीवयोश्च पित्तला // 86 //