________________ आरो बरेऽस्त्रियां कथिदारकूटोऽपवयोषिति / .. रिरी रीरी च रीतिस्तु स्त्रियां ब्राहयादिकं तथा // 8 // क्लीबे विद्युत्प्रियं घोष प्रकाश वंगशुल्वजम् / घण्टाशब्दमसुरावम् रवण लोहजादयः // 8 // स्त्रीवलीबसूचकं कांस्यं पारदः पारतः पुनः / कनिशं सूतकश्चैते पुनपुंसकलिंगके // 89 // जन्मनि सूतकं क्लीबे स्यात्पुलिंगे रसश्चलः / पौष्पके त्वन्तकाः क्लीवे स्यात्कदम्बाष्टकं नरि // 9 // सौराष्ट्रीप्रमुखा नार्या कासीसाधा नपुंसके। . गंधाश्मा-प्रमुखाः पुंसि गंधश्चामोदलेशयोः // 91 // हरितालादिकं क्लीबे वंगारिस्तत्र मानवे / मनोगुप्त्यादयो नार्या गोला स्त्रीक्लीवलिंगके // 12 // स्यात् सिंदूरादिकं क्लीबे हिंगुलः पुंसि वा स्त्रियाम् / शिलाजत्वादयः क्लीबे क्षारः काचस्तु पुंस्यपि // 93 // कुलाली-त्रितयं नार्या बोलादयो नरे पुनः / रत्नं तथा वसु क्लीबे पुंस्त्रियोस्तु मणिः स्मृतः // 14 // वैडूर्य-पञ्चकं क्लीबे पारागोऽस्त्रियामपि / लोहितको नरे लक्ष्मीपुष्पं नपुंसके मतम् // 95 // अस्त्रियामिन्द्रनीलश्च हीरकः पुंसि वा स्त्रियाम् / . विराटजादयः पुंसि प्रवालंपुनपुंसके // 96 // सूर्यकान्तादयः पुंसि क्लीबे शुक्तिज-मौक्तिके। . मुक्ता स्त्रियां पुनः षण्टे मुक्ताफलं रसोदभवम // 97 // इति पृथ्वीकायः / / वारि-पानीयमोऽम्बु क्लीबे नारादयस्तथा / वार स्त्रियामपरः क्लीबे स्त्रियामापोऽपि भाग्न च // 98 // सान्तम् आपः पयः पाथः क्लीबे घनरसः पुमान् / क्लीबे घनरसं कश्चित् पुंसि यादोनिवासकः // 99 // अस्थाघाद्याश्च पञ्चापि गंभीरप्रमुखाः पुनः / कलुषान्ता समादिष्टाः वाच्यविंगाः, विचक्षणः // 10 //