________________ उक्तादन्येऽपि ये शब्दा. यद्यल्लिंगप्रवर्तिनः / प्रायस्ते तादृशा वाच्या रूढितः स्वधियाऽनिशम् // 294 // इति तार्तीयकाण्डस्थः संदिग्धलिंगनिर्णयः / .. लेखितः स्मृतये नित्यं कल्याणोदधिसूरिभिः // इति तृतीयकाण्ड लिङ्गनिर्णयः समाप्तः चतुर्थकाण्ड लिङ्गनिर्णयः / अथ तुरीयकाण्डोक्तः सन्दिग्धलिङ्गनिर्णयः / लिख्यते गुरुपादाब्जसेवाहेवाकिना मया // 1 // भूर्भूमि-प्रमुखा नार्या कश्चिद् भू रान्तमव्ययम् / रत्नावती रत्नगर्भा क्षोणिोणी महिमही // 2 // समुद्ररशना क्षान्ता मौलिः कीलाभिधान्तरे / द्यावापृथिव्यौ द्यावाभूमी द्यावाक्षमे अपि // 3 // दिवस्पृथिव्यौ रादस्याविदन्त रोदसी स्त्रियाम् / . क्लीबे च रोदसी सान्ते सप्तैते द्वित्ववाचिनः // 4 // उर्वरा स्त्री रिणं क्लीबं तद्तद् उपरमूषरम् / रोदसीत्यव्ययः कचिनपुंसके स्थलं भवेत् // 5 // अकृत्रिमा स्थली वाच्या कृत्रिमा तु स्थला स्त्रियाम् / पुंल्लिगेऽपि मरुधन्वा खिलमप्रहतं त्रिषु // 6 // कश्चित् स्त्रियां खिला वक्ति स्त्रियां मृन्मृत्तिका-द्वयम / उषः पुंसि शुमा मृत्सा भृत्स्ना रुमा रुमत् स्त्रियाम् // 7 // सामुद्रं भेदवत् क्लीबमक्षीवं वशिरो नरे। क्लीबे च वशिरं कश्चित् सैन्धवं पुनपुंसके // 8 // मणिमन्थादयः क्लीबे रुचकत्रितयं तथा / सौवर्चलं पुनः कृष्णे तिलकं नृ-नपुंसके // 9 // यवक्षारादयः पुंसि स्त्रीलिंगे स्वर्जि-पंचकम् / पुंक्लीबवाचकं वर्ष क्लीबे स्यादुपवर्तनम् // 10 // विषयो देश-निर्गों द्वौ जनपदश्च पुंस्यमी / निवृत् स्त्रियां नरे. कश्चित् स्याद् राष्ट्र पुनपुंसके // 11 // .