________________ [.27 त्रिष्वधमर्षणं वाच्यमुपवीतं नृषण्ढयोः। .. उच्छिष्टे कवटं चास्त्री यज्ञसूत्रं नपुंसकम् // 249 // प्राचेतसादयः पुंसि क्षेत्रोत्थः पुनपुसके / स्त्रियां कृषिर्वणिज्या तु स्त्रीक्लीबलिंगवाचिनी // 250 // वस्नमस्त्री परिपणः पुंसि नीवी स्त्रियामिह / / विनिमयादयः पुंसि न्यासे चोपनिधिर्नरि // 251 // त्रिषु क्रय्यादयो वाच्या क्लीबे सत्यापनं पुनः / सत्यकारो नरे ज्ञेयः सत्याकृतिः स्त्रियामपि // 252 // पुंक्लीबे पण्यमाख्यातं पुंसि विपण-विक्रयौ / क्लीबे गण्यत्रिकं नूनं संख्या त्वेकादिका भवेत् // 253 // एकस्तु द्वौ त्रयश्चापि चत्वारो वाच्यलिंगकाः / पंच-सप्तादयोऽप्यष्टादशान्ताः स्युरलिंगिनः // 254 // षट् शब्दस्यापि रूपेषु न प्रोक्तो लिंगनिर्णयः / नान्त-मान्तत्व-राहित्यात् तथापि त्रिषु सम्मतः // 255 // नवनवतिपर्यन्तैकत्वे चैकोनविंशतिः / / स्त्रियां षष्टिस्त्रिषु ख्याता शतं च सहस्रायुते // 256 // पुंक्लीबयोस्त्रयोप्येते लक्षं स्त्रीक्लीबवाचकम् / प्रयुतं त्वस्त्रियां ज्ञेयं कोटिः स्त्रीलिंगवाचिनी // 257 // अब्जं खर्व निखर्व तथा महाम्बुजं किल / परार्द्ध-अंत्य-मध्ये द्वे नपुंसके मता इमे // 258 // अस्त्रियामबुंदं शंकुर्द्धयोर्वाधिस्तु मानवे / कति-तति-यति-मुख्याः डत्यन्तास्त्रिषु भूम्नि च // 259 // ये तमट्-प्रत्ययान्ताश्च पक्षे ड-प्रत्ययान्विताः / ते विंशतितमाद्याश्च विंशः प्रभृतयस्त्रिषु // 260 // सांयात्रिक-द्वयं पुंसि क्लीबेऽनन्तक-पञ्चकम् / पुंल्लिगे पोत-षट्कं च नौमङ्गिन्यादयः स्त्रियाम् // 261 // मङ्गो नरेऽस्त्रियां कश्चिदभ्रिः स्त्रीलिंगवाचिनी / उडुपस्तु तरण्डोऽस्त्री प्लवादयो नरे पुनः // 262 // वृद्धयाजीवो द्विगुणिको वाधुषिकः कुसीदिकः / वाधुषिरधमणः स्यादुत्तमर्णस्त्विमे त्रिषु // 263 //