________________ वर्णीमुख्या नरे क्लीबेऽवदानं च नपुंसकम् / पाताले वाडवोऽप्यस्त्री और्वे विप्रेऽपि वाडवः // 234 // आग्नीधी-द्वितयं चापि स्त्रियां भिक्षा नरस्त्रियोः / वृषी दृशी तु योषायां पुंक्लीबयोः कमण्डलुः // 235 / सिंहस्कंधस्य केशार्थे सटास्तु पुस्त्रियोरपिः। जटा सटा स्त्रियामत्र श्रोत्रियप्रमुखा नरे // 236 // सत्रं क्लीबे वितानोऽस्त्री बहिर्मतं नपुंसके / . आहुतिर्वतते नार्या स्यात् श्राद्धं पुनपुंसके // 237 // .. स्त्रीपुंसयोर्बलिातो दीक्षादयः स्त्रियामपि / भूपो नरेऽस्त्रियां कश्चिच्चषालो पुनपुंसके // 238 // तर्म क्लीबे नरे कश्चित् , अरणिः पुंस्त्रियोरिह / ऋक् बेता सामिधेनी च घाय्या समिति योषिति // 239 // एधो ना क्लीबमिमं च कश्चिदिध्मोऽस्त्रियामपि / भस्म-तर्पणमेधश्च क्लीबे मूर्तिः स्त्रियामिह // 240 // सुवो ना मुगुपभृच्च जुस्तु खलु योषिति / अस्त्रियां चमसो यज्ञपात्रेऽथ यज्ञियं त्रिषु // 241 // ध्रुवाऽऽमिक्षा स्त्रियां क्लीबे हविः सान्नायपंचकम् / , . पयस्या स्त्रीह षण्ढे च हव्यं तु कव्यमोदनम् // 242 // पृषातक पृषदाज्यं मधुपर्कद्विकं पुनः / स्त्री हवित्री हव्यपाकश्वरुश्चतुष्टयं नरे // 243 // पूर्त तु विष्टरोऽस्त्रीत्वेऽप्यग्निहोत्रीद्वयं नरे / अग्न्याधानमग्निहोत्रं क्लीबे दर्वी च योषिति // 244 // होमाग्निस्तु महाज्वालो महावीर-त्रयी नरे / वेष्टुतात्रमते क्लीबे ब्रह्मासनद्वयं तथा // 245 // ब्रह्माञ्जलि-द्वयं पुंसि स्त्रियां विघुष एव च / ब्रह्मत्वं तु ब्रह्मभूयं ब्राह्मत्रिकं नपुंसके // 246 // स्वाध्यायश्च जपः पुंसि प्रायो दन्तः प्रमानिह / औपवस्त्रं तूपवासः कृच्छं शीलं पुनव्रतम् // 247 // अस्त्रियां, नियमः पुंसि चरित्रं पुण्यकं किल / चारित्रचरणे वृत्तं चरितं च नपुंसके // 248 //