________________ * [ 25 पुंल्लिगे स्फुर-संग्राही क्षुरी छुरी कृपाणिका / शस्त्री तु छुरिका चासिपुत्र्यसिधेनुका स्त्रियाम् // 219 // अस्त्री दण्डो द्वयोर्यष्टिरीली स्त्री करवालिका / कुन्तादयो नरे भल्लः कुठारो मुद्गरो द्वयोः // 220 // परशुः पर्श्वधः पशुः स्वधितिश्च परश्वधः / शङ्कश्चैते नरे प्रख्यास्तोभरं शल्यमस्त्रियाम् // 221 // शूलं चक्रं च पुंक्लीबे व्रज्या यात्रा स्त्रियां मता / प्रस्थान-पञ्चकं षण्ढे नाऽऽसारश्चलितं त्रिषु // 222 / / प्रसारोऽभिक्रमश्चाभ्यमित्र्यादयो नरे स्मृताः / क्लीबे स्थाम-तरश्चैतौ बलं दृढोऽस्त्रियां पुनः // 223 // शौयौंजसी शुष्म-शुष्मं सहरश्वामी नपुंसके / * शक्तिः स्त्रियां द्वयोरूजः क्लीबे युद्धं नरे कलिः // 224 // संख्यं च समरो जन्य रणं च नरषण्ढयोः / संग्राम-त्रितयं पुंसि संस्फोटः कलहस्तथा // 225 // मृधं प्रहरणं संयदायोधनं नपुंसके / स्त्रियां युत् समिदाजिश्च शेषाः क्लीबे नरे पुनः // 226 // अनीकमस्त्रियां राटिः समितिश्च स्त्रियामपि / पुंल्लिगे संगरस्त्वभ्यामईश्चानंद एव हि // 227 // संपरायोऽस्त्रियां क्लीधे समाकं साम्परायिक / नियुद्धं चाथ पुंक्लीबे संयुगं पटह-द्वयम् // 228 // तुमुलं क्लीबलिंगेऽपि नासीरं स्त्रीनपुंसके / नासीरमस्त्रियां कश्चित् क्लीबेवा सौप्तिकं त्रिषु // 229 // स्वाद् वीराशंसनं वीरपाणक-त्रितयं पुनः। क्लाबेऽथ पुंसि विज्ञयाः संदाव-प्रमुखा इह // 230 // तत्र डिम्बोऽस्त्रियां वैरनिर्यातनं नपुंसकम् / वैरशुद्धि-द्वयं नार्या बलात्कारो हठो नरि // 231 // स्वमते प्रसभं क्लीव कचित्तु प्रसभोऽस्त्रियाम् / परिभूतः पराभूतो जितो भग्नः पराजितः // 232 // पलायितोऽभिभूतस्तु नष्टश्चैते त्रिषु स्मृताः / कारा गुप्ति तथा बन्दी स्त्रीलिंगे ग्रहकः पुमान् // 233 //