________________ 19j पूर्णपात्र-दिक क्लीबे पटच्चरं नपुंसके / / स्थाच्छाणीपंचकं नार्या पुंसि परिकरद्वयम् // 174 // . कुथस्त्रिष्वपटी नार्या वितानं पुनपुंसके / उल्लोचः कदकः पुंसि दूष्यं स्थूल नपुंसके // 175 // कश्चित् दूष्यं त्रिषु प्राह स्त्रीलिंगे केणिका-द्वयम् / संस्तर-स्रस्तरौ पुंसि तल्पं शयनमंचको // 176 // मंचस्त्विमेऽखियां वाच्याः शय्या खट्वा च योषिति / पुंसि पर्यक-पल्यको क्लीबे चोत्शीर्षक-द्वयम् // 177 // स्वमते चोपधानार्थे पुस्युपबर्ह एव हि / अमरेण पुनः प्रोक्तमुपबह नपुंसके // 178 // पुंसि पालोऽस्त्रियां कश्चित् पतद्ग्रह-द्वयं नरि / आत्मदर्शयुगं चात्र मुकुरो मकुरः पुनः // 179 // मकुरश्च नरे पोते [ ? प्रोक्ते] दर्पणं पुनपुंसके / आसन्दी नृस्त्रियोः पीठ स्त्रीक्लीबे कश्चिदस्त्रियाम् // 180 // विष्टरश्वासनं चैतौ कसिपुः पुनपुंसके / औशीरं क्लीवलिंगेऽपि स्त्रियां लाक्षादिकं नरे // 181 // , जतु क्लीबे नरे यावाऽलक्तौ क्लीबेऽञ्जनद्वयम् / त्रिषु के पावकः कश्चिद् अस्त्रियां दीपयामलम् // 182 // स्नेहप्रियादयः पुंसि क्लीवे च व्यंजनादिकम् / कंकतस्त्रिषु पुल्लिगे गुडो गिरित्रिकं पुनः // 183 // कंदूको राजसूयं च पुनपुंसकलिंगके। पुंसि राजादयो नार्या कर्णजिद्-अवसानकाः // 184 // गांडीवं गांडिवं चास्त्री पांचाली-सप्तकं स्त्रियाम् / . कर्णादयोऽपि पुल्लिगे पुस्त्रियोः श्रेणयोऽपि च // 185 // पण्डके तंत्रमावापप्रमुखाः पुंसि कीर्तिताः / राजशय्या-द्विकं नार्या क्लीबे भद्रासनादयः // 186 // भवेच्छ– त्रिषु क्लीबे चामरं वा मतं त्रिषु / बालव्यजनमेवात्र प्रकीर्णकं। नपुंसके // 187 // स्थगी स्त्री रोमगुच्छाद्याः पुंसि स्त्री कनकालुका / पादपीठ-द्विकं क्लीबेऽमात्यादयो नरे पुनः // 188 //