________________ 2. 1 जातिकोशं फलं चात्र जातिफलार्थसूचकाः / तन्त्रान्तराद् इमे ज्ञेयाः स्त्रियां पुंसि नपुंसके // 144 / / घनसारः सिताभ्रो ना मृगनाभिः स्त्रियां नरि। मृगमदो नरे नार्थी कस्तूरी गंधधूल्यपि // 15 // मृगोनाभिर्मदश्चैते कस्तूरिकार्थवाचिनः / समाख्याता पृथक्त्वेन नाभिस्त्रियां नरेऽपरः // 146 // क्लीबे कश्मीरजन्माद्या पक्षधूपादयो नरि। . कुंकुमं पुंसि वा क्लीबे संकोचपिशुनं तथा // 147 / / संकोच-पिशुनं त्वेके पृथक् पृथक् वदन्ति च / / कुकुमं पिशुन क्लीवे सूचके पिशुनखिषु // 148 // नारदे पिशुनः पुंसि क्लीबे संकोच-जापके / / राल-तुरुष्क-शब्दौ द्वौ पुंस्त्रीलिंगे निवेदितौ // 149 // पिण्डकाद्या नरि प्रायो गंधपिशाचिका स्त्रियाम् / अस्त्रियां भूषणं वाच्यं परिष्कारो नरे स्मृतः // 150 // . क्लीबे चाभरणं पुसि चूडामणि-चतुष्टयम् / . मुकुटं पुंसि वा क्लीबे मौलिस्तु नरयोषयोः // 151 // किरीटोष्णीषकोटीराण्यस्त्रियां पुष्पदाम तु। माल्यं क्लीबे स्त्रियां माला-खजौ तु गर्भको नरि // 152 // प्रभ्रष्टकादयः क्लीबे श्रन्थनं ग्रन्थनं पुनः / पुंसि संदर्भगुम्फो द्वौ स्त्रीलिंगे रचना मता // 153 // तिलक शेखरोत्तंसाऽवतंसाः सविशेषका / कर्णपूरोऽस्त्रियामते पुण्ड्राऽऽपीडौ नरि स्मृतौ // 154 // तमालपत्रचित्रे द्वे क्लीबेऽथ चोत्तरौ नरि / विज्ञातव्या पत्रलेखा-प्रमुखाश्च स्त्रियामिह // 155 // ना ताडंकस्ताडपत्रं क्लीवे च कर्णभूषणम् / कुण्डलं रुचकं चास्त्री स्त्रियामुत्क्षिप्तिकादिका // 156 // षण्ढे ग्रैवेयकं हारो यो मुक्तावली-द्वयम् / स्त्रियां मुक्ताकलापश्च देवछन्दोऽपि मानवे // 157 // अद्धहारस्तथा गुच्छो माणवो मंदरो नरे / एकावली-त्रयं नार्या केयूरं च नपुंसके // 158 //