________________ पुंल्लिगेऽध्यवसायोजों वीर्य स्त्रीवलीबलिंगयोः / प्रौढिी भीतिराशंका स्त्रियां भयं नपुंसके // 96 // तंका तकदरा एतेऽस्त्रियां षण्ढे च साध्वसम् / भयंकरं प्रतिभयं भीमं भीष्मं भयानकम् // 97 // भीषणं भैरवं घोरं दारुणोग्रे भयावहम् / एकादश त्रिषु ख्याता आश्चर्य चित्रमदद्भुतम् // 98 // चोद्यं चैते मताः क्लीबे तद्वति ते त्रिषु स्मृताः / जुगुप्सा तु घृणा शांति यां नरि शमादिकम् // 99 // * पुलकः कंटकश्चास्त्री क्लीबे जाड्यादिपञ्चकम् / स्तंभाद्याः विपथुः प्रान्ताः पुल्लिगे बाष्पमस्त्रियाम् // 100 // वैवर्ण्यमश्रुनेत्राम्बु रोदनाशूणि षण्ढके / क्लीबे स्वास्थ्य त्रिकं ज्ञेयं संतोषः पुंसि सम्मतः // 101 // धृतिस्मृत्यादयो नार्या क्लीबे तु ज्ञानपञ्चकम् / ब्रीडा तु पुस्त्रियो र्लज्जा हृीस्त्रपाऽपत्रपा स्त्रियाम् // 102 // मंदाक्षमौख्य॑जाड्यानि नपुंसके मतान्यपि / सादस्त्रिषु विषादोऽवसादो ना, स्त्री विषण्णता // 103 // आधिाधिर्मदस्वाप-संवेश-संलया नरि / निद्रादिपंचकीत्सुक्यायल्लकानि नपुंसके // 104 // [वा-औत्सुक्यायल्लके क्लीबे पंच निद्रादयः स्त्रियाम् // 104 // ] अरत्युत्कलिकोत्कंठा अमी स्त्रीलिंगवाचिनः / रणरणकहृल्लेखावुत्कंठस्तु त्रयो नरि // 105 // . अपुंस्यवहित्था शंका स्त्रियां कौसीधचापले / आलस्यं क्लीबलिंगेऽमी हर्षाष्टकं नरि स्मृतम् // 106 // चित्तप्रसन्नता प्रीतिर्मुद् स्त्रियां मानमस्त्रियाम् / पुंक्लीबे पुंसि वा गर्वोऽवलिप्तता-त्रिकं स्त्रियाम् // 107 // अहंकारादयः पुंसि स्पर्धा तु पुस्त्रियोरपि / स्त्रीलिंगेऽपि विनिर्दिष्टमहमहमिका-त्रिकम् // 108 // स्त्रीलिंगे चंडताग्लानिः पुंसि प्रबोध एव च / क्लीवे दैन्यद्विकं पुंस्यावेगान्ताश्च श्रमादयः // 109 //