________________ उदन्तस्वावयः पुंस्यभिधा संज्ञादिकं स्त्रियाम् / गोत्रं क्लीबे पुनर्नामाभिधाने पुनपुंसके // 81 // संबोधनादयः पञ्च नपुंसके हवो नरि / स्त्रीलिंगे हूतिसंहूती शपथान्ताः शपो नरि // 82 // वाङमुखं सपनं क्लीबे प्रतिवचस्तथोत्तरम् / / चटु चाटु तु पुंक्लीवे प्रियं सत्यादयः खलु // 83 // विकृष्टान्तास्तु वाग्भेदाः पृष्ठमांसादनं विना / / तद्वति त्रिषु वा क्लीबे सम्बकं पुनः स्तवो नरि // 4 // स्त्रीलिंगे वर्णनाषट्कं स्तोत्रं क्लीबमिहोदितम् / स्त्रीलिंगे गालिराशीश्च कीतौ श्लोकः पुमानिह // 85 // समाज्ञा कीर्तिरभिख्या समाख्या समज्या स्त्रियाम् / . यशः क्लीबे स्त्रियां प्रोक्ता ऋशति रिशतीति वा // 86 // कल्या काल्या स्त्रियामुक्ता चर्चरी चर्मटी तथा / अस्त्रियां दूषणं पक्षे, षण्ढके परिभाषणम् // 87 // स्वमते पुस्त्रियोः काकु स्त्री काकुरमरे पुनः / / आगूः स्त्री संगरः पुंसि स्त्रीलिंगे नाट्यधर्मिका // 88 // गीतं गानादयः क्लीबेऽस्त्रियां तांडव-तंडके / ' गीतिः स्त्री स्वमते हल्लीसकं क्लीबेऽथवा स्त्रियाम् // 89 // आंगिका सात्त्विकश्चैतौ त्रिषु क्लीबे तु नाटकम् / . माणोऽस्त्री तु डिमः पुंसि क्लीबे बाद्यादिकाष्टकम् // 10 // तुर्य प्रवालक-कुम्भौ पुंक्लीबयोः लयो नरि। .... अंन्यालिंग्यूर्ध्वकश्चैते पुंस्यपुंसि तु काहला // 91 // दुन्दुभि / स्त्रियां भेरी पुक्लीबे पटहः पुनः / पुंस्थानकोऽस्त्रियां कश्चित् हुडुक्का पुंस्त्रियोरपि // 12 // कोणो ना त्रिषु बीभत्सं पुंसि हास्यादयो मताः / / रसाः शृंगारमस्त्रीत्वे वक्रोष्टिका नृवर्जिते // 93 // पुंसि शृंगारबीरौ द्वौ स्त्रीलिंगे करुणा सदा। . नपुंसके रसाः शेषा गौडस्त्वेवमक्क् पुनः // 94 // कुत् रुषौ तु कुधा शुक् च, रुषा प्रगल्भता खियाम् / शोकादिनवकं पुंस्यस्त्रियामुयोग उधमः // 95 //