________________ [ 35 ] अंचलगच्छ के उदीयमान विद्वान् साहित्यरसिक मुनि श्री कलाप्रभसागरजी ने इसका सम्पादन कार्य मुझे सौंपकर, मुझे साहित्य सेवा का अवसर प्रदान किया; एतदर्थ मैं उनका अत्यंत आभारी हूँ। वैशाख शुक्ला 10 वि० सं० 2038 / जयपुर-२ महोपाध्याय विनयसागर प्रकाशन एवं शोधाधिकारी राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जयपुर।