________________ [ 34 ] प्रति में अशुद्धियों की बहुलता है और भूल से निम्नांकित पद्य भी प्राप्त नहीं हैं :-तृतीय काण्ड लोकांक 42, (3) चतुर्थ काण्ड श्लोकांक 86 उत्तरार्द्ध, 87 पूर्वार्द्ध, 126 एवं 127 का पूर्वार्द्ध / 2. भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्ट्रीट्यूट पूना की है / क्रमांक 762/1875-76 है। प्रति का माप 254 11 सेंटीमीटर है। पत्र 18 पंक्ति 17 और प्रति पंक्ति अक्षर 46 हैं। इसमें भी लेखन-पुष्पिका नहीं है किन्तु यह भी 58 वीं शती की ही लिखित है / लिपि सुन्दर और सुवाच्य है / जोधपुर वाली प्रति की अपेक्षा यह प्रति अधिकांशतया शुद्ध है / मुनि श्री कलाप्रभसागरजी के सहयोग से इसकी जीरोक्स फोटोस्टेट कापी मुझे प्राप्त हुई थी। इस प्रन्थ का सम्पादन कार्य मैंने जोधपुर वाली प्रति को ही आदर्श प्रति मानकर प्रारंभ किया था / शब्दों में अशुद्धि - बाहुल्य के कारण मैंने हेमचन्द्राचार्य रचित अभिधान चिन्तामणि नाममाला, स्वोपज्ञ टीका (यशोविजय जैन प्रन्थमाला भावनगर से प्रकाशित संस्करण) के आधार पर संशोधन कर, शुद्ध शब्दों को मूलपाठ में और प्रति के अशुद्ध पाठ को पाठान्तर में रखा था / पूना की प्रति प्राप्त होने पर इसके भी पाठभेद दिए थे / जोधपुर वाली प्रति में अप्राप्त पद्य भी पूना वाली प्रति में होने से उन्हें यथास्थान सम्मिलित कर दिए थे किन्तु मुनि श्री कलाप्रभसागरजी की यह मान्यता रही कि, जब अभिधान चिन्तामणि नाममाला के आधार पर समस्त शब्दों को शुद्ध कर दिया गया है तब पाठान्तरों को देने की आवश्यकता महीं है / यही कारण है कि प्रकाशन के समय उन्होंने पाठभेद हटा देना ही उचित समझा। इस प्रन्थ में दो परिशिष्ट दिए हैं / प्रथम परिशिष्ट में ग्रन्थकार ने किन्हीं - किन्हीं शब्दों के / लगों में मतभेद प्रदर्शित करते हुए जिन कोशकारों या कोशों की ओर संकेत किया है उसकी नामानुक्रम से तालिका दी है। दूसरे परिशिष्ट में अभिधान चिन्तामणि नाममाला में प्रस्तुत समस्त 1542 श्लोकों में संकलित 13000 से भी अधिक शब्दों को अकारानुक्रम से देकर, लिंग-निर्देशक संकेताक्षरों के साथ कोश के काण्ड और पद्य तथा लिंगनिर्णय के काण्ड और पद्याङ्कों का निर्देश किया है। साथ ही यह प्रन्थ गुर्जर भाषा-भाषी लोगों के लिए अत्यधिक उपयोगी हो सके, इस दृष्टि से प्रत्येक शब्द का गुजराती अर्थ भी दिया गया है। इस कारण यह परिशिष्ट मूल ग्रन्थ से आठ गुना हो जाने से स्वतंत्र ग्रन्थ का रूप प्राप्त कर गया है। इस परिशिष्ट में अभिधान चिन्तामणि नाममाला के काण्ड और पद्यांकों के उल्लेख यशोविजय जैन ग्रन्थमाला भावनगर प्रकाशित संस्करण के आधार पर ही किए गए हैं। प्रन्थ का मुद्रण कार्य दूरस्थ प्रदेश के प्रेसों में हुआ, प्रूफ संशोधन भी तत्थानीय व्यक्तियों द्वारा होने से इस प्रकाशन में अशुद्धियां अधिक रह गई हैं।