________________ [32] का 'नानार्थ रत्नमाला', भैरवकवि का ‘अनेकार्थ कोश', मेदिनिकर का 'अनेकार्थ शब्द कोश', इरुगपद दंडाधिनाथ का 'नानार्थरत्नमाला', महिप का 'अनेकार्थ तिलक', सौमरि का 'एकार्थ नाममाला' तथा 'यक्षरनाममाला' आदि प्रसिद्ध हैं। प्रथम कोटि के अनेक कोष प्रन्थ उपलब्ध हैं / भागुरि, आपिशल, शाकटायन, कात्यायन, वाचस्पति आदि के कोशग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं हैं। पर यत्र-तत्र उद्धरण के रूप में उनके मत को देखा जा सकता है। इनमें अमरकोश, हारावलि (पुरुषोतमदेव), अभिधान रत्नमाला ( हलायुध), वैजयन्ती ( यादव प्रकाश), नाममाला (धनंजय ), अभिधान चिन्तामणि नाममाला (हेमचन्द्र ), विश्वलोचन (श्रीधर), कल्पद्रम ( केशव दैवज्ञ ), नाम संग्रह माला (अप्पय्य दीक्षित ), कोशावतंस (राघव कवि ), नाम माला कोश ( भोज), शब्द रत्न सम्मुचय (शाहजी), शब्द रत्नाकर (साधुसुन्दर ), विश्व कोश (शिवदत्त) आदि प्रसिद्ध हैं। अमरकोश का नाम ही 'नामलिंगानुशासन' है। इसमें नितान्त वैज्ञानिक प्रक्रिया से शब्दों का संकलन किया गया है। इसमें समानार्थक और नानार्थक शब्दों का लिंगनिर्णय के साथ विवेचन किया गया मिलता है। 'अभिधान चिन्तामणि' लिंग-निर्णय की दृष्टि से कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र की सर्वाधिक प्रामाणिक और वैज्ञानिक आधार-सम्पन्न रचना है। इसमें भाषातत्व के अध्ययन के सम्बन्ध में अत्यधिक महत्वपूर्ण सामग्री संकलित है। हेमचन्द्राचार्य के कृतित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने पृथक्-पृथक् क्षेत्र में काम करने के लिए अनेक चिन्तकों और विद्वानों को प्रेरणा दी / प्रस्तुत विवेच्य प्रन्थ 'लिंगनिर्णय' के कृतिकार का उपजीव्य भी हेमचन्द्राचार्य का साहित्य और व्यक्तित्व ही रहा है / कृतिकार श्री कल्याणसागरसूरि : 'लिंगनिर्णय' के कृतिकार श्री कल्याणसागरसूरि का जन्म 1633 विक्रमी में वैशाख सुदी 6 को लोलाड़ा ग्राम ( वढ़ियार प्रदेश) में श्रीमाली ज्ञातीय कोठारी गोत्र में हुआ था / इनके पिता का नाम श्रेष्ठि नानिग तथा माता का नाम नामिलदे था / 1641 वि० में इन्होंने फागुन सुदी 4 को धोलका स्थान पर दीक्षा ली / सं. 1649 में माह सुदी 6 को ये अहमदपुर में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए / पौष बदि 11 सं. 1671 को ये अंचलगच्छ के गच्छनायक बने / सं. 1718 में इनका स्वर्गवास हुआ / अंचलाच्छ की परम्परा में ये 18 वे पाट पर है और श्री धर्ममूर्तिसूरि के पट्टधर हैं / युगप्रधान और दादा शब्द से इनकी प्रसिद्धि है / इनका विशाल शिष्य सम्प्रदाय था। इन्होंने सहस्राधिक मूर्तियों और शताधिक मंदिरों की प्रतिष्टायें करवाई / मुगल सम्राट जहांगीर से भी इनका सम्बन्ध रहा / इनकी 29 कृतियाँ प्रसिद्ध हैं। इनमें से लिंगनिर्णय, मिश्रलिंगनिर्णय, पार्श्वनाथ सहस्रनाम स्तोत्र आदि रचनाएँ विशेष प्रसिद्ध