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________________ [3] लिंगानुशासन साहित्य' लेख में 41 प्रन्थों का उल्लेख किया है। श्री युधिष्ठिर मोमांसक ने 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' (भाग 2) में ऐसे 24 ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण दिया है और 16 ग्रन्थों का नामतः उल्लेख किया है। वे हैं- 1. शन्तनु, 2. व्याडि.. 3. पाणिनि, 4. चन्द्रगोमी, 5. वररुचि, 6. अमरसिंह, 7. देवनन्दी, 8. शंकर, 9. हर्षवर्द्धन, 10. दुर्गसिंह, 11. वामन, 12. पाल्यकीर्ति, 13. भोजदेव, 14. बुद्धिसागरसूरि, 15. अरुणदेव. 16. हेमचन्द्राचार्य, 17. मलयगिरि, 18. हेलाराज, 19. रामसूरि, 20. वेंकटरंग, 21. लिंगकारिका, 22. लिंगनिर्णय, 23. नवलकिशोर शास्त्री तथा 24. सरयूप्रसाद व्याकरणाचार्य / इनमें क्रमांक 21 व 22 के कृतिकारों का पता नहीं चलता / पाणिनि, वररुचि, अमरसिंह, हर्षवर्द्धन, दुर्गसिंह, वामन, पाल्यकीर्ति, हेमचन्द्र, रामसूरि, बेंकटरंग, नवलकिशोर शास्त्री और सरयूप्रसाद व्याकरणाचार्य की कृतियां तो इस समय उपलब्ध हैं / लिंगकारिका और लिंगनिर्णय ग्रन्थ भी इस समय प्राप्य है। शेष कृतियों के उद्धरण मात्र यत्र तत्र प्राप्त होते हैं। आधुनिक काल में अनेक भाषा वैज्ञानिकों ने लिंग निर्धारण की समस्या पर अपने अपने ढंग से विचार किया है। ऐसे लोगों में पं० सीताराम चतुर्वेदी, पं० किशोरीदास वाजपेयी, डॉ० धीरेन्द्र वर्मा, श्री कामताप्रसाद गुरु, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉ मंगलदेव शास्त्री, डॉ० उदय नारायण तिवारी, आचाय रामचन्द्र वर्मा, पं. दीनबन्धु झा, पं० मुकुन्द शर्मा, डॉ० बद्रोप्रसाद पंचोली, डा. जादवप्रसाद अग्रवाल, डॉ० प्रतिभा अग्रवाल, सुश्री दीप्ति शर्मा, पं० चारुदेव शास्त्री आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं / भाषा विज्ञान के विदेशी पंडितों के सामने लिंग-निर्णय की समस्या विशेष महत्व की नहीं है। इसलिए उन्होंने पृथक् से इस समस्या पर विचार नहीं किया / कोष-विज्ञान भाषा-विज्ञान की नई शाखा है / इसमें भी लिंग-विचार से सम्बद्ध सामग्री उपलब्ध होती है / कोशकार सिद्ध-असिद्ध, यौगिक, रूढ़ व योगरूढ़ सभी प्रकार के शब्दों के समूह का वैज्ञानिक रीति से संकलन करके उनकी अर्थगति की ओर संकेत करता है। प्राचीनकाल में 'कोष विज्ञान' का स्वरूप भले ही प्रतिष्ठापित नहीं हो पाया हो; पर कोश-लेखनकी सुदृढ़ परम्परा तो थी ही। कोश दो प्रकारके होते थे-प्रथम वे जो सामान्य रूप से शब्दों का परिगणन करते हैं और जिनमें समानार्थक पर्यायवाची शब्दों के माध्यम से शब्दार्थ की पहचान की जाती है; दूसरे प्रकार के वे कोष हैं जिनमें भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त शब्दों का एक साथ, एकत्र उल्लेख किया जाता है। दूसरे प्रकार के कोषों में हेमचन्द्र का 'अनेकार्थ संग्रह, ' धनंजय का 'अनेकार्थ नाममाला' और 'अनेकार्थ निघण्टु', केशव स्वामी का 'मानार्णव संक्षेप', महेश्वर का 'विश्वप्रकाश', अभयपाल
SR No.004307
Book TitleLingnirnayo Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherArya Jay Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages108
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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