________________ 10 15 120 विमलप्रभायां - [अभिषेकयुक्तोऽच्युतीकृत इत्यर्थः। अभोम्यो मूत्रम्, अमोघसिद्धिर्मज्जा, जिनवरो वैरोचनः, तेन युक्तो मरणभयहरः। तथा श्वाऽश्वगोहस्तियुक्तः, क्लेशानां वज्रदण्ड: पशुजनभयवश्चाष्टमोऽन्योऽतिरौद्रः, महामांससमय इति। एवं विण्मूत्रमज्जा पञ्चप्रदीपा अष्टसमयाः, द्वौ चन्द्रादित्यौ। एवं दशविधा पूजा पञ्चामृतैः पञ्चप्रदीपैर्भवति गणचक्र इति मद्यमांसमैथुनामृतभक्षणमिति समयचतुष्टयं कर्तव्यमाचार्येण / अन्यथा मारवृन्दैगुह्यत इति तथागतनियमः // 148 // इदानीं षट्त्रिंशत्समया उच्यन्ते योगिनीनां रूपपरिवर्तेनेतिश्वाऽश्वो गोहस्तिमेषास्त्वजहरिणखराः शकरोऽष्ट्री दिगेते कुम्भीराखुः कुलीरो झष इति मकरो दर्दुरः कूर्मशङ्खौ / गण्डो व्याघ्रश्च ऋक्षः सनकुलचमरी जम्बुकोद्रो विडाल / आरण्यश्वा ससिंहो वसुदशकमिदं भूतजं क्रोधजं च // 149 // [233b] श्वाऽश्वेत्यादिना। इह श्वा तारा। अश्वः पाण्डरा। गौर्मामकी। हस्ती लोचना। वज्रधात्वीश्वरी सर्वरूपधारिणीति / 'मेषः शब्दवज्रा। अजा स्पर्शवज्रा। हरिणी रसवज्रा। खरो रूपवजा। 'शूकरो गन्धवज्रा। उष्ट्रो धर्मधातुवजा इति। : विगेते दश बुद्धबोधिसत्त्वकुलभेदेन। तथा कुम्भीरः चचिका। आखुः वैष्णवी / कुलीरो वाराही। मषः कौमारी। मकर ऐन्द्री। दर्दुरो ब्रह्माणी / कूमं ईश्वरी। शङ्खो महालक्ष्मीति भूतजाष्टकम् / 'गण्डो जम्भी। व्याघ्रः स्तम्भी। 'ऋक्षो "मानिनी। मकुलोऽतिबला / चमरी वज्रशृङ्खला / "जम्बुको भृकुटी / उद्रः 12 चुन्दा / विडालो मारीची। आरण्यश्वाऽतिनीला। १४सिंहो रौद्राक्षीति५ दशकं "क्रोधजम् // 149 // गोधाखुः शालिजातः कपिरपि शशकःशल्लकीषु(षुः)कृकोऽष्टौ मानी पक्षी शुकश्च प्रकटितजलधिः कोकिला शारिका च / लावः पारावतोऽन्यो वक इति चटक: चक्रवाकश्च हंसः श्रीकृञ्चा कोकिलाक्षी रजकभगवती तित्तिरी सारसा च // 150 // 1. क. ख. छ. भो. च्युत / 2. भो. sGrol Ma iNa ( पञ्चताराः ) / 3. क. ख. छ. भो. योगिनां / 4. भो. Lug Mo ( मेषी)। ५.भो. Bon Mo (खरी)। 6. भो. Phag Mo ( शूकरी)। 7. भो. Kumbhira (कुम्भीरा)। 8. भो. पाठे तु 'गण्डो अतिबला जम्भी व्याघ्री' इति क्रमः। 9. भो. Dom Mo (ऋक्षी)। 10. ग. माननी, छ. मारिणी। 11. भो. Ce sByan Mo ( जम्बुकी ) / 12. ख. उद्रः, भोटपाठे तु 'उद्रः मारीची विडालो चुन्दा' इतिक्रमः / 13. क. ख. छ. मारेची। ख. ग. अरण्यो। 14. भो. Sen Ge M 15. ग. 'इति' नास्ति / 16. ग.क्रोधवज्रम्, छ. क्रोढजम् /