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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन आस्तिकवाद ( =आत्मा ) झूठा है / मूर्ख और पण्डित सभी शरीर के नष्ट होते ही उच्छेद को प्राप्त हो जाते हैं / मरने के बाद कोई नहीं रहता' / " संजयवेलट्टिपुत्त भी परलोक के विषय में कोई निश्चित मत नहीं रखते थे। उसी बैठक में अजातशत्रु ने भगवान् बुद्ध से कहा था "भन्ते ! एक दिन मैं जहाँ संजयवेलट्ठिपुत्त० ।-श्रामण्य के पालन करने० ? "ऐसा कहने पर भन्ते ! संजयवेलट्ठिपुत्त ने उत्तर दिया-'महाराज ! यदि आप पूर्छ, क्या परलोक है ? और यदि मैं सम कि परलोक है, तो आपको बतलाऊँ कि परलोक है / मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, मैं दूसरी तरह से भी नहीं कहता, मैं यह भी नहीं कहता कि यह नहीं है, परलोक नहीं है ।...अयोनिज प्राणी नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और न नहीं हैं / अच्छे बुरे काम के फल हैं, नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और न नहीं हैं ? 0 तथागत मरने के बाद होते हैं, नहीं होते हैं? यदि मुझे ऐसा पूछे और मैं ऐसा समझू कि मरने के बाद तथागत न रहते हैं और न नहीं रहते हैं, तो मैं ऐसा आपको कहूँ। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता०'।"२ ___यह बहुत आश्चर्य की बात है कि महात्मा बुद्ध परलोकवादी होते हुए भी अनात्मवादी थे। बौद्धों के अनुसार आत्मा प्रज्ञप्तिमात्र है। जिस प्रकार 'रथ' नाम का कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है, वह शब्दमात्र है, परमार्थ में अंग-संभार है, उसी प्रकार आत्मा, जीव, सत्त्व, नाम रूपमात्र (स्कन्ध-पंचक) है। यह कोई अविपरिणामी शाश्वत पदार्थ नहीं है। बौद्ध अनीश्वरवादी और अनात्मवादी हैं। वे सर्वास्तिवादी, सस्वभाववादी तथा बहुधर्मवादी हैं, किन्तु वे कोई शाश्वत पदार्थ नहीं मानते। उनकी मान्यता में द्रव्य सत् हैं, किन्तु क्षणिक हैं। महात्मा बुद्ध ने कहा था "भिक्षुओ ! यदि कोई कहे कि मैं तब तक भगवान् ( बुद्ध ) के उपदेश के अनुसार नहीं चलूँगा, जब तक कि भगवान् मुझे यह न बता देंगे कि संसार शाश्वत है वा अशाश्वत ; संसार सान्त है वा अनन्त ; जीव वही है जो शरीर में है वा जीव दूसरा है, शरीर दूसरा है ; मृत्यु के बाद तथागत रहते हैं वा मृत्यु के बाद तथागत नहीं रहते-तो भिक्षुओ, यह बातें तो तथागत के द्वारा बे-कही ही रहेंगी और वह मनुष्य यों हो मर जाएगा। १-दीघनिकाय, 12, पृ० 20-21 / . २-वही, 112, पृ० 22 / ३-बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० 223 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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