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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___ तब भगवान् ने सुन्दरिक भारद्वाज ब्राह्मण को गाथाओं में कहा "बाहुका, अविकक्क, गया और सुन्दरिका में, सरस्वती और प्रयाग तथा बाहुमती नदी में, काले कर्मों वाला मूढ चाहे नित्य नहाए, ( किन्तु ) शुद्ध नहीं होगा। क्या करेगी सुन्दरिका, क्या प्रयाग और क्या बाहुलिका नदी? "(वह) पापकर्मी =कृतकिल्विष दुष्ट नर को नहीं शुद्ध कर सकते। शुद्ध ( नर ) के लिए सदा ही फल्गू है, शुद्ध के लिए सदा ही उपोसथ है। शुद्ध और शुचिकर्मा के व्रत सदा ही पूरे होते रहते हैं। "ब्राह्मण ! यहीं नहा, सारे प्राणियों का क्षेम कर / यदि तू झूठ नहीं बोलता, यदि प्राण नहीं मारता, यदि बिना दिया नहीं लेता, ( और ) श्रद्धावान् मत्सर-रहित है। (तो) गया जाकर क्या करेगा, क्षुद्र जलाशय ( =उदपान ) भी तेरे लिए गया है।' धर्मकीर्ति का प्रसिद्ध श्लोक है वेदप्रामाण्यं कस्यचित् कर्तृवादः, स्नाने धर्मेच्छा जातिवादावलेपः। . संतापारम्भः पापहानाय चेति, ध्वस्तप्रज्ञानां पंचलिंगानि जाड्ये // निम्रन्थ हरिकेशबल ने ब्राह्मणों से कहा- “जल से आत्म-शुद्धि नहीं होती।"२ तब उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई और उन्होंने हरिकेशबल से पूछा-"आपका नद (जलाशय) कौन सा है ? आपका शान्ति-तीर्थ कौन सा है ? आप कहाँ नहा कर कर्म-रज धोते हैं ? हे यज्ञपूजित संयते ! हम आपसे जानना चाहते हैं, आप बताइए।" उस समय निर्ग्रन्थ हरिकेशबल ने उन्हें आत्म-शुद्धि के स्नान का उपदेश दिया। उन्होंने कहा- "अकलुषित एवं आत्मा का प्रसन्न-लेश्या वाला धर्म मेरा नद (जलाशय) है / ब्रह्मचर्य मेरा शान्ति-तीर्थ है, जहाँ नहा कर मैं विमल, विशुद्ध और सुशीतल होकर कर्म-रजों का त्याग करता हूँ। यह स्नान कुशल-पुरुषों द्वारा दृष्ट है / यह महास्नान है। अतः ऋषियों के लिए प्रशस्त है / इस धर्म-नद में नहाए हुए महर्षि विमल और विशुद्ध होकर उत्तम-अर्थ ( मुक्ति ) को प्राप्त हुए हैं।" इस प्रकार बौद्ध और निम्रन्थ स्नान से आत्म-शुचि नहीं मानते। किन्तु कुछ श्रमण स्नान को आत्म-शुद्धि का साधन मानते थे। एकदण्डी और त्रिदण्डी परिव्राजक स्नानशील १-मज्झिमनिकाय, 2017 पृ० 26 / २-उत्तराध्ययन, 12 // 38 / ३-वही, 12 / 45 / ४-वही, 12346-451 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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