________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 3 श्रमण और वैदिक-परम्परा की पृष्ठ-भूमि शीलांक सूरि का यह प्रतिपादन, 'वापी, कूप, तडाग आदि निर्माण को राजा, अमात्य आदि प्रभु-वर्ग उत्तम मोक्ष-हेतु मानता है -आचार्य सायण के इस उल्लेख से बहुत सम्बन्धित है / यह धर्म भी निर्ग्रन्थों को परम मोक्ष-साधन के रूप में मान्य नहीं रहा, इसीलिए भृगुपुत्रों ने कहा था कि धन और धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है-'धणेण किं धम्मधुराहिगारे?'२ (1) सत्य, (2) तप, (3) दम, (4) शम और (5) मानस-उपासना-ये पाँचों साधन श्रमण-परम्परा में स्वीकृत हैं, किन्तु सब श्रमण-संघों में समान रूप से स्वीकृत हैं, यह नहीं कहा जा सकता / निर्ग्रन्थ-श्रमण सत्य को मोक्ष का साधन मानते हैं, किन्तु सत्य ही परम मोक्ष-साधन है, ऐसा एकान्तिक-पक्ष उन्हें मान्य नहीं है। तप को भी वे मोक्ष का साधन मानते हैं, किन्तु अनशन से उत्कृष्ट तप नहीं हैं या तप ही परम मोक्ष-साधन है, ऐसा वे नहीं मानते। उनके अभिमत में तप के 12 प्रकार हैं / अनशन बाह्य-तप है, ध्यान अन्तरंग-तप है / वह अनशन से उत्कृष्ट है / / ___ इसी प्रकार दम्, शम और मानस-उपासना भी एकान्तिक रूप से मान्य नहीं हैं, किन्तु वे समुदित रूप से मान्य हैं। इनका विशद विवेचन 'साधना-पद्धति' (सातवें प्रकरण) में देखें। २-स्नान निम्रन्थ-श्रमण स्नान को आत्म-शुद्धि का साधन नहीं मानते / बौद्ध-श्रमणों का अभिमत भी यही रहा है। उस समय सुन्दरिक भारद्वाज ब्राह्मण ने भगवान् से यह कहा-- "क्या आप गौतम ! स्नान के लिए बाहुका नदी चलेंगे ?" .. "ब्राह्मण ! बाहुका नदी से क्या (लेना) है ? बाहुका नदी क्या करेगी ?" "हे गौतम ! बाहुका नदी लोकमान्य ( =लोक सम्मत ) है, बाहुका नदी बहुत जनों द्वारा पवित्र ( =पुण्य ) मानी जाती है। बहुत से लोग बाहुका नदी में ( अपने ) किए पापों को बहाते हैं।" १-तैत्तिरीयारण्यक, 10 / 62, सायण भाज्य, पृ० 765: . स्मृतिपुराणप्रतिपाद्यो वापीकूपतडागादि निर्माणरूपोत्र धर्मो विवक्षितः / स एवोत्तमो मोक्षहेतुरिति राजामात्यादयः प्रभवो मन्यन्ते / २-उत्तराध्ययन, 14 / 17 / ३-तैत्तिरीयारण्यक, 10 / 62, पृ० 765 : तपो नानशनात् परम् / ४-उत्तराध्ययन, 3 // 30 //