________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (8) अग्निहोत्र सायंकाल और प्रातःकाल में घरों का मूल्य है / अग्निहोत्र के अभाव में क्षुधित अग्नि घरों को जला डालती है इसलिए वह घरों का मूल्य है। अग्नि-होत्र अच्छा याज्ञ और अच्छा होना है। वह यज्ञ-क्रतु' का प्रारम्भ है। स्वर्गलोक की ज्योति है, इसलिए कुछ ऋषि अग्निहोत्र को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (10) यज्ञ देवों को प्रिय है। देवता पूर्वानुष्ठित यज्ञ के द्वारा स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं। वे यज्ञ के द्वारा ही असुरों का विनाश कर पाए हैं। ज्योतिष्टोम-यज्ञ. के द्वारा द्वेष करने वाले शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। यज्ञ में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि यज्ञ को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (11) मानसिक उपासना ही प्रजापति के पद की प्राप्ति का साधन है। इसीलिए वह चित्त-शुद्धि का कारण है। मानसिक उपासना से युक्त एकान मन से योगी लोग अतीत, अनागत और व्यवहृत वस्तुओं का साक्षात्कार करते हैं। मानसिक उपासना से युक्त एकाग्न मन वाले विश्वामित्र आदि ऋषियों ने संकल्प-मात्र से प्रजा का सृजन किया था। मानसिक आसना में सर्व प्रतिष्ठित हैं इसलिए कुछ ऋषि मानसिक उपासना को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (12) कुछ मनीषी लोग संन्यास को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। यह तिरसठवें अनुवाक का वर्णन है। बासठवें अनुवाक में भी इन बारह पर्वां का निरूपणहुआ है। उनके भाष्य में आचार्य सायण ने कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं-नैष्ठिक ब्रह्मचारी 'दम' को परम मान उसमें रमण करते हैं। आरण्यक मुनि वानप्रस्थ 'शम' को परम मान उसमें रमण करते हैं / वापी, कूप, तड़ाग आदि के निर्माणात्मक धर्म को राजा, मंत्री आदि परम मानते हैं। कुछ वेदार्थवादी अग्नि को परम मानते हैं / कुछ वेदार्थवादी अग्निहोत्र को परम मानते हैं / कुछ वेदार्थवादी यज्ञ को परम मानते हैं / सगुण ब्रह्मवादी मानसिक उपासना को परम मानते हैं। संन्यास हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के द्वारा परम रूप में अभिमत है। भाष्यकार ने आगे लिखा है कि ब्रह्मा पूर्वोक्त मतानुयायी लोगों की तरह १-तैत्तिरीयारण्यक, 10 / 63, सायण भाज्य, पृ० 770 : अग्न्याधेयमग्निहोत्रं दर्शपूर्णमासावाग्रयणं चातुर्मास्यानि निरूढपशुबन्धः सौत्रामणीति सप्त हविर्यज्ञाः / क्रतुशब्दो यूपवत्सु सोमयागेषु रूढः / अग्निष्टोमोऽत्य ग्निष्टोम उक्थ्यः षोडशी वाजपेयोऽतिरात्रोप्तोर्यामश्चेति सप्त सोमसंस्थाः क्रतवः / तेषां सर्वेषां यज्ञक्रतूनां प्रारम्भक मग्निहोत्रम् /