________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 3 श्रमण और वैदिक परम्परा की पृष्ठ-भूमि 61 (2) जो अग्नि आदि देवता हैं, वे तप से बने हैं / वाशिष्ठ आदि महर्षियों ने भी तप तपा और देवत्व को प्राप्त किया। हम लोग भी तप के द्वारा शत्रुओं को परास्त कर रहे हैं / तप में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि तप को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (3) दान्त पुरुष दम से अपने पापों का विनाश करते हैं। दम से ब्रह्मचारी स्वर्ग में गए। दम जीवों के लिए दूर्घर्ष-अपराजेय है। दम में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि दम को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (4) शान्त पुरुष शम के द्वारा शिव (मंगल पुरुषार्थ) का आचरण करते हैं। नारद आदि मुनि शम के द्वारा स्वर्ग में गए / शम जीवों के लिए दुर्धर्ष है / शम में सर्व प्रतिष्ठित हैं इसलिए कुछ ऋषि शम को परम-मोक्ष साधन बतलाते हैं / (5) दान (गौ, हिरण्य आदि का दान) यज्ञ की दक्षिणा होने के कारण श्रेष्ठ है / लोक में भी सब आदमी दाता के उपजीवी होते हैं / धन-दान से योद्धा शत्रुओं को परास्त करते हैं। दान से द्वेष करने वाले भी मित्र बन जाते हैं। दान में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि दान को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (6) धर्म ( तालाब, प्याऊ आदि बनाने रूप ) सर्व प्राणीजात की प्रतिष्ठा (आधार) है। लोक में भी धमिष्ठ पुरुष के पास जनता जाती है-धर्म, अधर्म का निर्णय लेती है। धर्म से पाप का विनाश होता है। धर्म में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि धर्म को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। (7) प्रजनन (पुत्रोत्पादन) ही गृहस्थ की प्रतिष्ठा है। लोक में पुत्र रूपी धागे को विस्तृत बनाने वाला अपना पितृ-ऋण चुका पाता है। पुत्रोत्पादन ही उऋण होने का प्रमुख साधन है / इसलिए कुछ ऋषि प्रजनन को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। - (8) अग्नित्रय' ही त्रेयी-विद्या (वेद-त्रयी) है / वही देवत्व प्राप्ति का मार्ग है / गार्हपत्य नामक अग्नि ऋग्वेदात्मक है। वह पृथ्वी-लोक स्वरूप और रथन्तर सामरूप है / दक्षिणाग्नि से आहार का पाक होता है। वह यजुर्वेदात्मक, अन्तरिक्ष-लोक रूप और वामदेव्य सामरूप है। आह्वनीय अग्नि सामवेदात्मक स्वर्गलोक रूप और बृहत् सामरूप है, इसलिए कुछ ऋषि अग्नि को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। १-वैदिक कोश, पृ० 129 : वैदिक-यज्ञ के प्रमुख तीन अग्नियों में एक गार्हपत्य है। अथर्ववेद (6 / 6 / 30) के अनुसार "योऽतिथीनां स आहवनीयो, यो वेश्मनिसगार्हपत्य यस्मिन् पचति स दक्षिणाग्नि' अर्थात् अतिथियों के लिए प्रयुक्त अग्नि आहवनीय, गृह-यज्ञों में प्रयुक्त गार्हपत्य और पकाने का अग्नि दक्षिणाग्नि है।