________________ प्रकरण : तीसरा श्रमण और वैदिक-परम्परा की पृष्ठभूमि पहले दो प्रकरणों में हम श्रमण और वैदिक-परम्परा के स्वतंत्र अस्तित्व, उनके विचारभेद और श्रमण-परम्परा की एकता के हेतुभूत सूत्रों का अध्ययन कर चुके हैं। प्रस्तुत प्रकरण में हम कुछ ऐसे तथ्यों का अध्ययन करेंगे, जो श्रमण और वैदिक-परम्परा को विभक्त तो करते हैं, किन्तु सर्वथा नहीं। वे श्रमणों की एकसूत्रता के हेतु तो हैं, किन्तु सर्वथा नहीं। पहले प्रकरण में निर्दिष्ट सात हेतु श्रमण और वैदिक-परम्परा के विभाजन में तथा श्रमणों की एकसूत्रता में जैसे पूर्णरूपेण व्याप्त है, वैसे इस प्रकरण में बताए जाने वाले हेतु पूर्णत: व्याप्त नहीं है। फिर भी उनके द्वारा श्रमण तथा वैदिक-परम्परा की पृष्ठ-भूमि को समझने में प्राप्त सहायता मिलती है, इसलिए उनके विषय में चर्चा करना आवश्यक है और सच तो यह है कि उनकी विशद् चर्चा के बिना हम उत्तराध्ययन के हृदय का स्पर्श भी नहीं कर पाएंगे / हमारे सामने आलोच्य विषय हैं १-दान २-स्नान ३-कर्तृवाद ४-आत्मा परलोक ५-स्वर्ग और नरक ६-निर्वाण १-दान तैत्तिरीयारण्यक' का एक प्रसंग है कि एक बार प्राजापत्य आरुणी अपने पिता प्रजापति के पास गया और उसने प्रजापति से पूछा कि महर्षि लोग मोक्ष-साधन के विषय में किस साधन को परम बतलाते हैं ? प्रजापति ने कहा (1) सत्य से पवन चलता है, सत्य से सूर्य प्रकाश करता है, सत्य वाणी की प्रतिष्ठा है, सत्य में सर्व प्रतिष्ठित है, इसलिए कुछ ऋषि सत्य (सत्य वचन) को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। १-तत्तिरीयारण्यक, 10 / 63, पृ० 767-771 /