________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___"जिनके शिक्षा-पद, पशुओं को बलि के लिए यज्ञ के खम्भे में बाँधे जाने के हेतु बनते हैं, वे सब वेद और पशु-बलि आदि पाप-कर्म के द्वारा किए जाने वाले यज्ञ दुराचारसम्पन्न उस यज्ञकर्ता को त्राण नहीं देते, क्योंकि कर्म बलवान् होते हैं। "केवल सिर-मूंड लेने से कोई श्रमण नहीं होता, 'ओम्' का जप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता, केवल अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता और कुश का चीवर . पहनने मात्र से कोई तापस नहीं होता। ___ "समभाव की साधना करने से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण होता है, ज्ञान की आराधना-मनन करने से मुनि होता है, तप का आचरण करने से तापस होता है। "मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है। ____ "इन तत्त्वों को अर्हत् ने प्रकट किया है। इनके द्वारा जो मनुष्य स्नातक होता है, जो सब कर्मों से मुक्त होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। इस प्रकार जो गुण-सम्पन्न द्विजोत्तम होते हैं, वे ही अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ है।" ___ इस प्रकार संशय दूर होने पर विजयघोष ब्राह्मण ने जयघोष की वाणी को भलीभाँति समझा और सन्तुष्ट हो, हाथ जोड़ कर उसने महामुनि जयघोष से इस प्रकार कहा-- - "तुमने मुझे यथार्थ ब्राह्मणत्व का बहुत ही अच्छा अर्थ समझाया है / "तुम यज्ञों के यज्ञकर्ता हो, तुम वेदों को जानने वाले विद्वान् हो, तुम वेद के ज्योतिष आदि छहों अंगों के विद्वान् हो, तुम धर्मों के पारगामी हो। ___ "तुम अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ हो, इसलिए हे भिक्षु-श्रेष्ठ ! तुम हम पर भिक्षा लेने का अनुग्रह करो।" (मुनि)-- "मुझे भिक्षा से कोई प्रयोजन नहीं है। हे द्विज ! तू तुरन्त ही निष्क्रमण कर-मुनि-जीवन को स्वीकार कर, जिससे भय के आवर्तों से आकीर्ण इस घोर संसारसागर में तुझे चक्कर लगाना न पड़े।"" श्रमण-संस्कृति के कर्मणा-जाति के सिद्धान्त ने वैदिक-ऋषियों को भी प्रभावित किया और महाभारत एवं पुराण काल में कर्मणा-जाति के सिद्धान्त का प्रतिपादन होने लगा। महाभारत में ब्राह्मण के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं "जो सदा अपने सर्व व्यापी रूप से स्थित होने के कारण अकेले ही सम्पूर्ण आकाश में परिपूर्ण-सा हो रहा है तथा जो असंग होने के कारण लोगों से भरे हुए स्थान को मी सूना समझता है, उसे ही देवता लोग ब्राह्मण (ब्रह्मज्ञानी) मानते हैं। १-उत्तराध्ययन, 25 // 6-38 /