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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 2 २-श्रमण-परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु 55 मुख है, वह तुम्हीं बतलाओ / तुम कहो नक्षत्रों का मुख क्या है ? धर्मों का मुख क्या है, तुम्हीं बताओ। ___"जो अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ हैं ( उनके विषय में तुम्हीं कहो ) / हे साध ! यह मुझे सारा संशय हैं, तुम मेरे प्रश्नों का समाधान दो।" ___ "वेदों का मुख अग्निहोत्र है, यज्ञों का मुख यज्ञार्थी है, नक्षत्रों का मुख चन्द्रमा है और धर्मों का मुख काश्यप ऋषभदेव हैं।" ____ "जिस प्रकार चन्द्रमा के सम्मुख गृह आदि हाथ जोड़े हुए, वंदना नमस्कार करते हुए और विनीत भाव से मन का हरण करते हुए रहते हैं उसी प्रकार भगवान् ऋषभ के सम्मुख सब लोग रहते थे।" ___“जो यज्ञवादी हैं, वे ब्राह्मण की सम्पदा से अनभिज्ञ हैं / वे बाहर में स्वाध्याय और तपस्या से उसी प्रकार ढंके हुए हैं, जिस प्रकार अग्नि राख से ढंकी हुई होती है। __ "जिसे कुशल पुरुषों ने ब्राह्मण कहा है, जो अग्नि की भाँति सदा लोक में पूजित हैं, उन्हें हम कुशल पुरुष द्वारा कहा हुआ ब्राह्मण कहते हैं / "जो आने पर आसक्त नहीं होता, जाने के समय शोक नहीं करता, जो आर्य-वचन में रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते है / ____ "अग्नि में तपा कर शुद्ध किए हुए और घिसे हुए सोने की तरह जो विशुद्ध है तथा राग-द्वेष और भय से रहित है / उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। ___ "जो त्रस और स्थावर जीवों को भली-भाँति जान कर मन, वाणी और शरीर से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं / " .: "जो क्रोध, हास्य, लोभ या भय के कारण असत्य नहीं बोलता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। __ "जो सचित्त या अचित्त-कोई भी पदार्थ, थोड़ा या अधिक, कितना ही क्यों न हो, उसके अधिकारी के दिए बिना नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं / ___ "जो देव, मनुष्य और तिर्यञ्च सम्बन्धी मैथुन का मन, वचन और शरीर से सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं / ___ "जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार कामभोग के वातावरण में उत्पन्न हुआ जो मनुष्य उनसे लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण . कहते हैं। __"जो लोलुप नहीं है, जो निर्दोष भिक्षा से जीवन का निर्वाह करता है, जो गृहत्यागी हैं, जो अकिंचन है, जो गृहस्थों में अनासक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। ..
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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