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________________ . 4 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन __ (सोमदेव)-"अर्थ और धर्म को जानने वाले भूति-प्रज्ञ (मंगल-प्रज्ञा युक्त) आप कोप नहीं करते / इसलिए हम सब मिल कर आपके चरणों की शरण ले रहे हैं। . ___"महाभाग ! हम आपकी अर्चा करते हैं। आपका कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसकी हम अर्चा न करें। आप नाना व्यंजनों से युक्त चावल-निष्पन्न भोजन लेकर खाइए। ___"मेरे यहाँ यह प्रचुर भोजन पड़ा है। हमें अनुगृहीत करने के लिए आप कुछ खाएँ।" ___ महात्मा हरिकेशबल ने हाँ भर ली और एक मास की तपस्या का पारणा करने के लिए भक्त-पान लिया। ___ देवों ने वहाँ सुगन्धित जल, पुष्प और दिव्य-धन की वर्षा की। आकाश से दुंदुभि बजाई और 'अहो दानं' (आश्चर्यकारी दान)- इस प्रकार का घोष किया। यह प्रत्यक्ष ही तप की महिमा दीख रही है, जाति की कोई महिमा नहीं है। जिसकी ऋद्धि ऐसी महान् (अचिन्त्य शक्ति-सम्पन्न) है, वह हरिकेश मुनि चाण्डाल का पुत्र है। (2) निर्ग्रन्थ जयघोष अपने भाई विजयघोष के यज्ञ-मण्डप में गए। यज्ञ-कर्ता ने वहाँ उपस्थित हुए मुनि को निषेध को भाषा में कहा--- "भिक्षो ! तुम्हें भिक्षा नहीं दूंगा और कहीं याचना करो। "हे भिक्षो ! यह सबके लिए अभिलषित भोजन उन्हीं को देना है, जो वेदों को जानने वाले विप्र हैं, यज्ञ के लिए जो द्विज हैं, जो वेद के ज्योतिष आदि छहों अंगों को जानने वाले हैं, जो धर्मशास्त्रों के पारगामी हैं, जो अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ हैं।" ___ वह उत्तम अर्थ की गवेषणा करने वाला महामुनि वहाँ यज्ञ-कर्ता के द्वारा प्रतिषेध किए जाने पर न रुष्ट ही हुआ और न तुष्ट ही। ___ न अन्न के लिए, न जल के लिए और न किसी जीवन-निर्वाह के साधन के लिए किन्तु उनकी विमुक्ति के लिए मुनि ने इस प्रकार कहा __"तू वेद के मुख को नहीं जानता है, यज्ञ का जो मुख है उसे नहीं जानता है, नक्षत्र का जो मुख है और धर्म का जो मुख है, उसे भी नहीं जानता है। जो अपना और पराया उद्धार करने में समर्थ है, उसे तू नहीं जानता। यदि तू जानता है तो बता" मुनि के प्रश्न का उत्तर देने में अपने को असमर्थ पाते हुए द्विज ने परिषद्-सहित हाथ जोड़ कर उस महामुनि से पूछा- "तुम कहो वेदों का मुख क्या है ? यज्ञ का जो १-उत्तराध्ययन, 12 // 5-37 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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