________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___ "ओ अदर्शनीय मूर्ति ! तुम कौन हो ? किस आशा से यहाँ आए हो ? अधनंगे तुम पांशु-पिशाच (चुडैल) से लग रहे हो। जाओ, आँखों से परे चले जाओ। यहाँ क्यों खड़े हो ?" उस समय महामुनि हरिकेशबल की अनुकम्पा करने वाला तिंदुक वृक्ष का वासी यक्ष अपने शरीर का गोपन कर मुनि के शरीर में प्रवेश कर इस प्रकार बोला- "आपके यहाँ पर बहुत-सा भोजन दिया जा रहा है, खाया जा रहा है और भोगा जा रहा है। मैं भिक्षाजीवी हूँ, यह आपको ज्ञात होना चाहिए / अच्छा ही है कुछ बचा भोजन इस तपस्वी को मिल जाए।” (सोमदेव)—'यहाँ जो ब्राह्मणों के लिए भोजन बना है, वह केवल उन्हीं के लिए बना है / वह एक-पाक्षिक है-अब्राह्मण को अदेय है। ऐसा अन्न-पान हम तुम्हें नहीं देंगे, फिर यहाँ क्यों खड़े हो ?" (यक्ष)-"अच्छी उपज की आशा से किसान जैसे स्थल (ऊँची भूमि) में बीज बोते हैं, वैसे ही नीची भूमि में बीज बोते हैं। इसी श्रद्धा से (अपने आपको निम्न भूमि और मुझे स्थल तुल्य मानते हुए भी तुम ) मुझे दान दो। पुण्य की आराधना करो। यह क्षेत्र है, बीज खाली नहीं जाएगा।" (सोमदेव)—“जहाँ बोए हुए सारे के सारे बीज उग जाते हैं, वे क्षेत्र इस लोक में हमें ज्ञात हैं / जो ब्राह्मण जाति और विद्या से युक्त हैं, वे ही पुण्य-क्षेत्र हैं।' (यक्ष)-"जिनके क्रोध है, मान है, हिंसा है, झूठ है, चोरी है और अपरिग्रह है-- वे ब्राह्मण जाति-विहीन, विद्या-हीन और पाप-क्षेत्र हैं। ___"हे ब्राह्मणो ! इस संसार में केवल तुम वाणी का भार ढो रहे हो। वेदों को पढ़ कर भी उनका अर्थ नहीं जानते। जो मुनि उच्च और नीच घरों में भिक्षा के लिए जाते हैं, वे ही पुण्य-क्षेत्र हैं।" __ (सोमदेव)- "ओ ! अध्यापकों के प्रतिकूल बोलने वाले साधु ! हमारे समक्ष तू क्या अधिक बोल रहा है ? हे निर्ग्रन्थ ! यह अन्न-पान भले ही सड़ कर नष्ट हो जाए किन्तु तुझे नहीं देंगे।" __(यक्ष)-"मैं समितियों से समाहित, गुप्तियों से गुप्त और जितेन्द्रिय हूँ। यह एषणीय (विशुद्ध) आहार यदि तुम मुझे नहीं दोगे, तो इन यज्ञों का आज तुम्हें क्या लाभ होगा ?" (सोमदेव)-“यहाँ कौन है क्षत्रिय, रसोइया, अध्यापक या छात्र, जो डण्डे और फल से पीट कर, गल-हत्था देकर इस निर्ग्रन्थ को यहाँ से बाहर निकाले।" __ अध्यापकों के विचार सुन कर बहुत कुमार उधर दौड़े और डण्डों, बेतों और चाबुकों से उस ऋषि को पीटने लगे।