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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 2 २-श्रमण-परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु 51 __ जो रति और अरति को त्याग, शान्त और बन्धन-रहित हो गया है, जो सारे संसार का विजेता और वीर है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जिसने सर्व प्रकार से प्राणियों की मृत्यु और जन्म को जान लिया है, जो अनासक्त है, सुगत है और बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जिसकी गति को देवता, गन्धर्व और मनुष्य नहीं जानते, जो वासना-क्षीण और अर्हन्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। __जिसको भूत, वर्तमान या भविष्य में किसी प्रकार की आसक्ति नहीं रहती, जो परिग्रह और आसक्ति-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो श्रेष्ठ, उत्तम, वीर, महर्षि, विजेता, स्थिर, स्नातक और बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जिसने पूर्व जन्म के विषय में जान लिया है, जो स्वर्ग और नरक दोनों को देखता है और जो जन्म क्षय को प्राप्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। संसार के नाम-गोत्र कल्पित हैं और व्यवहार मात्र हैं। एक-एक के लिए कल्पित ये नाम-गोत्र व्यवहार से चले आए हैं। मिथ्याधारणा वाले अज्ञों (के मन) में ये ( नाम ) घर कर गए हैं / (इसीलिए) अज्ञ लोग हमें कहते हैं कि ब्राह्मण जन्म से होता है। ___न (कोई) जन्म से ब्राह्मण होता है और न जन्म से अब्राह्मण / ब्राह्मण कर्म से होता है और अब्राह्मण भी कर्म से / कृषक कर्म से होता है, शिल्पी भी कर्म से होता है, वणिक कर्म से होता है (और) सेवक भी कर्म से। .. चोर भी कर्म से होता है, योद्धा भी कर्म से होता है, याजक भी कर्म से होता है (और) राजा भी कर्म से होता है।"१ ___- उत्तराध्ययन में हरिकेशबल और जयघोष के-ये दो प्रसंग हैं, जो भगवान् महावीर के जातिवाद सम्बन्धी दृष्टिकोण पर पूरा प्रकाश डालते हैं। हरिकेशबल जन्मना चाण्डाल जाति के थे और जयघोष जन्मना ब्राह्मण थे। वे दोनों यज्ञ-मण्डप में गए और उन्होंने जातिवाद को बहुत स्पष्ट आलोचना की। वे दोनों प्रसंग वाराणसी में ही घटित हुए। . (1) हरिकेशबल को यज्ञ-मण्डप में आते देख जातिमद से मत्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी ब्राह्मणों ने परस्पर इस प्रकार कहा-"बीभत्स रूप वाला, काला, विकराल और बड़ी नाक वाला, अधनंगा, पांशु-पिशाच (चुडैल)-सा, गले में शंकरदृष्य (उकुरडी से उठाया हुआ चिथड़ा) डाले हुए वह कौन आ रहा है ? १-सुत्तनिपात, वासेट्ठसुत्त।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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