________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___जो रस्सी रूपी क्रोध को, प्रग्रह रूपी तृष्णा को, मुँह पर के जाल रूपी मिथ्या धारणाओं को और जुआ रूपी अविद्या को तोड़ कर बुद्ध हुआ है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो कटुवचन, वध और बन्धन को बिना द्वेष के सह लेता है, क्षमाशील-क्षमा ही जिसकी सेना और बल है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। पानी में लिप्त न होने वाले कमल की तरह और आरे की नोक पर न टिकने वाले सरसों के दाने की तरह जो विषयों में लिप्त नहीं होता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। __जो गृहस्थ, प्रवजित दोनों से अलग है, जो बेघर हो विहरण करता है, जिसकी आवश्यकताएं थोड़ी हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो स्थावर और जंगम सब प्राणियों के प्रति दण्ड का त्याग कर न तो स्वयं उनका वध करता है और न दूसरों से (वध) कराता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो विरोधियों में अविरोध रहता है, हिंसकों में शान्त रहता है और आसक्तों में अनासक्त रहता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ / / आरे की नोक पर न टिकने वाले सरसों के दाने की तरह जिसके राग, द्वेष, अभिमान आदि छूट गए हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो अकर्कश, ज्ञानकारी–सत्य बात बोलता है, जिससे किसी को चोट नहीं पहुँचती, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो संसार में लम्बी या छोटी, पतली या मोटी, अच्छी या बुरी किसी चीज की चोरी नहीं करता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जिसे इस लोक या परलोक के विषय में तृष्णा नहीं रहती, जो तृष्णा-रहित, आसक्तिरहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो आसक्ति-रहित है, ज्ञान के कारण संशय-रहित हो गया है और अमृत (निर्वाण) को प्राप्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो दोनों-पुण्य और पाप की आसक्तियों से परे है, शोक-रहित, रज-रहित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। जो इस संकटमय, दुर्गम संसार रूपी मोह से परे हो गया है, जो उसे तैर कर पार कर गया है, जो ध्यानी है, जो पाप-रहित है, संशय-रहित है, तृष्णा-रहित हो शान्त हो गया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। .. जो विषयों को त्याग बेघर हो प्रवजित हुआ है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। ____ जो तृष्णा को त्याग बेघर हो प्रव्रजित हुआ है, जो तृष्णा-क्षीण है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।