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________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 1 २-श्रमण-संस्कृति का प्राग-ऐतिहासिक अस्तित्व 25 उसके दोनों कंधों पर ऋषभ की भाँति केश-राशि लटकी हुई है। डॉ० कालिदास नाग ने उसे जैन-मूर्ति के अनुरूप बताया है। वह लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है।' अपोलो रेशफ ( यूनान ) की धड़-मूर्ति भी वैसी ही है / 2 ये भी श्रमण-संस्कृति की सुदीर्घ प्राचीनता के प्रमाण हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मूर्तियों या उनके उपासकों के सिर पर नाग-फण का अंकन है। वह नाग-वंश के सम्बन्ध का सूचक है। सातवें तीर्थङ्कर भगवान् सुपार्श्व के सिर पर सर्प-मण्डल का छत्र था।3 ___नाग-जाति वैदिक-काल से पूर्ववर्ती भारतीय जाति थी। यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और द्राविड जातियाँ भी मूलतः भारतीय और श्रमणों की उपासक थीं। उनकी सभ्यता और संस्कृति ऋग्वैदिक सभ्यता और संस्कृति से पूर्ववर्ती और स्वतंत्र थी। उनके उपास्य ऋषभ, सुपार्श्व आदि तीर्थङ्कर भी प्राग-वैदिककाल में हुए थे। पूर्वोक्त दोनों साधनों (साहित्य और पुरातत्त्व) से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि श्रमण-परम्परा वैदिक-काल से पूर्ववर्ती है / 11 . . . 1-Discovery of Asia, plate No. 5. .. २-(क) आदि तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव, पृ० 140 के बाद / (ख) R. G. Marse--The historic importance of bronze statue of Reshief, discovered in Syprus. (Bulletin of the Deccan . College Research Institute, Poona, Vol. XIV, pp. 230-236). ३-त्रिष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व 3, सर्ग 5, श्लोक 78-80 : तीर्थाय नम इत्युक्त्वा तत्र सिंहासनोत्तमे / उपाविशज्जगन्नाथोऽतिशयैरुपशोभितः // पृथ्वीदेव्या तदा स्वप्ने दृष्टं तादृग्महोरगम् / शक्रो विचक्रे भगवन्मूनिच्छत्रमिवापरम् // तदादि चाभूत्समवसरणेष्वपरेवपि / नाग एकफणः पञ्चफणो नवफणोऽथवा // ४-सर जॉन मार्शल : 'मोहनजोदड़ो', भाग 1, अंक 8, पृ० 110-112 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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