________________ खण्ड 2, प्रकरण : 11 सूक्त और शिक्षा-पद 506 सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नर्से विडम्बियं / सव्वे आभरणा भारा सव्वे कामा दुहावहा // 13 // 16 // सब गीत विलाप हैं, सब नृत्य विडम्बना हैं, सब आभरण भार हैं और सब कामभोग दुःखकर हैं। खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खभूया खाणी अणत्याण उ कामभोगा // 14 // 13 // ये काम-भोग क्षण भर सुख और चिरकाल दुःख देने वाले हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देने वाले हैं, संसार-मुक्ति के विरोधी हैं और अनर्थों की खान हैं। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स अफला जन्ति राइशो // 14 // 24 // जो-जो रात बीत रही है, वह लौट कर नहीं आती। अधर्म करने वाले की रात्रियाँ निष्फल चली जाती हैं। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स सफला जन्ति राइओ // 14 // 25 // जो-जो रात बीत रही है, वह लौट कर नहीं आती। धर्म करने वाले की रात्रियाँ सफल होती हैं। . मरिहिसि रायं ! जया तया वा मणोरमे कामगुणे पहाय / एको हु धम्मो नरदेव ! ताणं न विज्जई अन्नमिहेह किंचि // 14 // 40 // __ राजन् ! इस मनोरम काम-भोगों को छोड़ कर जब कभी मरना होगा। हे नरदेव ! एक धर्म ही त्राण है / उसके सिवाय कोई दूसरी वस्तु त्राण नहीं दे सकती। देवदाणवगन्धव्वा जक्खरक्खसकिन्मरा। बम्भयारिं नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति तं // 16 // 16 // उस ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर-ये सभी नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है। एस धम्मे धुवे निअए सासए जिणदेसिए / सिद्धा सिझन्ति चाणेण सिज्झिस्सन्ति तहापरे // 16 // 15 // ___ यह ब्रह्मचर्य धर्म, ध्रुव, नित्य, शाश्वत और अर्हत् के द्वारा उपदिष्ट है इसका / पालन कर अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं और भविष्य में भी होंगे।